हरियाली तीज की पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, इससे प्रसन्न होकर बाबा भोले शिव ने हरियाली तीज के दिन ही माँ पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
अखंड सौभाग्य का प्रतीक यह पौराणिक व आपसी सौहार्द परिपूर्ण त्यौहार भारतीय परंपरा में पति-पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धा और विश्वास कायम रखने का त्यौहार है | इसके अलावा यह पर्व पति-पत्नी को एक दूसरे के लिए त्याग करने का संदेश भी देता है।
इस दिन कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं ,वहीं विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को भगवान शिव तथा पार्वती से अक्षुण्ण बनाये रखने की कामना करती हैं।
*हरियाली तीज पूजा विधि*
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हरियाली तीज में हरी चूड़ियाँ, हरे वस्त्र पहनने,सोलह श्रृंगार करने और मेहंदी रचाने का विशेष महत्व है। इस त्यौहार पर विवाह के पश्चात् पहला सावन आने पर नवविवाहिताओं को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है।
लोकमान्य परंपरा के अनुसार नव विवाहिता लड़की के ससुराल से इस त्यौहार पर सिंधारा भेजा जाता है, जिसमें वस्त्र,आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी, घेवर-फैनी और मिठाई इत्यादि सामान भी होता है।
इस दिन महिलाएं मिट्टी या बालू से मां पार्वती और शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में सुहाग की सभी सामग्री को एकत्रित कर थाली में सजाकर माता पार्वती को चढ़ाना चाहिए।
नैवेद्य में भगवान को खीर पूरी या हलुआ और मालपुए से भोग लगाकर प्रसन्न करें, तत्पश्चात् भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाकर तीज माता की कथा सुननी या पढ़नी चाहिए।
पूजा के बाद इन मूर्तियों को नदी या किसी पवित्र जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है।शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती ने इस तिथि को सुहागिन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो सुहागिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं,उनको सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है |
*डॉ योगेश कौशिक, पत्रकार*
रिर्पोट :- सिद्धार्थ भारद्वाज प्रभारी उत्तर प्रदेश।
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