सांसद विकास कार्यों को लेकर कतई गंभीर नहीं 17वीं लोकसभा में सांसदों ने 58 फीसदी निधि खर्च की

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18वीं लोकसभा में अभी तक एक भी काम स्वीकृत नहीं

देहरादून 19 अप्रैल । उत्तराखंड के सांसदों को राज्य के विकास की कितनी चिंता है तथा इसे लेकर वह कितने गंभीर हैं इसका सच जानकर कोई भी हैरान हो सकता है। इन सांसदों द्वारा 17वीं लोकसभा के कार्यकाल में अपनी स्वीकृत निधि का सिर्फ 58 फीसदी ही खर्च किया गया जबकि 18वीं लोकसभा के गठन से लेकर अब तक किसी भी संासद द्वारा राज्य के लिए कोई एक भी काम कराने की स्वीकृति तक नहीं ली गई है जबकि इन सभी सांसदों को पांच पांच करोड़ सांसद निधि स्वीकृत है।
काशीपुर निवासी अधिवक्ता नदीम उद्दीन द्वारा एक जनहित में सूचना के अधिकार के तहत मांगी सूचना से मिली जानकारी के आधार पर 17वीं लोकसभा के कार्यकाल में राज्य के सांसदों द्वारा कुल 5728 कार्य स्वीकृत कराये गये थे जिनमें से 3577 कार्य तो पूर्ण हो गए लेकिन 1470 अभी तक शुरू भी नहीं हो सके हैं। सवाल यह है कि 18वीं लोकसभा के लिए सांसदों ने अभी तक कोई कार्य स्वीकृत नहीं कराया है उनकी सांसद निधि खर्च की बात ही क्या की जा सकती है। जहां तक बात 17वीं लोकसभा के दौरान सांसदों द्वारा अपनी निधि खर्च करने पर नजर डाली जाए तो यहां भी उन्होंने 50-60 फीसदी निधि का इस्तेमाल किया है। यानी 40 फीसदी के आसपास निधि लैप्स हो गई अगर जनहित में इसका उपयोग किया जाता तो बहुत सारे काम हो सकते थे और जनता को बड़ी राहत मिल सकती थी।
अगर संसदीय क्षेत्रवाद इस निधि खर्च पर गौर करें तो 17वीं लोकसभा में अल्मोड़ा सांसद अजय टम्टा ने 64 फीसदी सांसद निधि खर्च की, वही हरिद्वार सांसद डा. निशंक ने 50 फीसदी, पौड़ी सांसद तीरथ सिंह रावत ने 38 फीसदी टिहरी सांसद राज्य लक्ष्मी शाह ने 68 फीसदी, नैनीताल सांसद अजय भटृ ने 64 सांसद निधि खर्च की है। इस सूची में भले ही तीरथ सिंह रावत सबसे फिसड्डी रहे हो और राज्य लक्ष्मी शाह सबसे अव्वल लेकिन अगर उत्तराखंड राज्य के सभी पांच सांसदों का औसत देखा जाए तो वह 58 फीसदी ही है इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि सांसद निधि के उपयोग में उत्तराखंड के सभी सांसद फिसड्डी साबित हुए हैं। 18वीं लोकसभा के गठन को इतना समय बीत चुका है लेकिन अभी तक किसी भी संासद द्वारा एक भी काम स्वीकृत नहीं कराया जाना हैरान करता है जबकि इन माननीयों द्वारा जनता से विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं पूर्व लोकसभा के कार्यकाल के 1470 कार्यों का अभी तक अधर में लटका होना यही बताता है कि सांसदों को इन कामों की कोई चिंता है ही नही।ं