परमात्मा “आनन्द स्वरूप” है :आचार्य ममगांई

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देहरादून 31 दिसंबर। जोगीवाला प्रगति विहार बाला सुन्दरी मन्दिर प्राँगण में शिवशंकर उषा कोठारी मुख्य यजमान के रूप में तथा कथा से पूर्व पूरी मोहल्ले की महिलाओं ने शिवमन्दिर से कलश यात्रा निकाली जिसमें ज्योतिष्पीठ व्यास पदाल॔कृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई जी नें भक्तों को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रमात्मा की प्रत्येक क्रिया आनंद पूर्ण है,आनन्द के लिए है। आनन्द” उद्भव एवं विस्तार करने के लिए है। उसने क्रीड़ा करने के लिए-खेल खेलने के लिए विनोद और मनोरञ्जन के लिए यह सारा संसार रचा है। लीलाधर” की लीलाएँ उसी के स्वयं के लिए ही नहीं प्रत्येक चराचर के आह्लाद और उल्लास प्रदान करने वाली हैं।* प्राणी भी आनन्द की ही खोज में निरन्तर संलग्न रहता है। *उसे अपनी समझ के अनुसार जहां कहीं भी आनन्द दीखता है वहीं जा पहुँचता है,जो वस्तुएँ उसे आनन्ददायक लगती हैं उन्हें ही प्राप्त करने की चेष्टा करता है। सच्चा आनन्द और झूठा आनन्द परखने में भूल हो सकती है पर इतना निश्चित है कि हर प्राणी आनन्द चाहता है और अपनी परिष्कृत अथवा अपरिष्कृत बुद्धि के अनुसार जहाँ भी आनन्द दिखाई पड़ता है वहीं रहना चाहता है उसी को प्राप्त करना चाहता है। इसी चाहना आकाँक्षा के लिए उसका प्रायः सारा ही जीवन उत्सर्ग होता है।
*सत्, चित्, आनन्द का सम्मिश्रित रूप ही “ब्रह्म” है। चूंकि हम सब इन तीनों ही को चाहते हैं और इन्हें ही अधिक मात्रा में प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, इसलिए यही कहना होगा कि हमारी प्रवृति “ब्रह्म” प्राप्ति की दिशा में है। यही हमारी प्रकृति भी है। इस संसार में समस्त जड़ चेतन अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार प्रवृत्तिरत है। जीव भी इसका अपवाद नहीं हो सकत। आज विशेषरूप से शिवशंकर कोठारी श्रीमती उषा कोठारी श्रुति कोठारी राजेंद्र प्रसाद कोठारी आनंदी कोठारी संजय कोठारी संध्या कोठारी अजय कोठारी कीर्ति कोठारी मंजू बहुगुणा अजय बहुगुणा अंजू थपलियाल रोशन थपलियाल वीरेंद्र मोहन उनियाल श्रीमती पूनम उनियाल कुबेर उनियाल श्रीमती सुमन उनियाल डॉक्टर प्रीतिका उनियाल वशिष्ठ डॉक्टर राहुल वशिष्ठ गीता बमराड़ा वरुण उनियाल आदि भक्त गण उपस्थित थे।