पर्वाधिराज पर्युषण पर्व प्रेमसुख दरबार के प्रांगन में प्रारंभ।

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देहरादून 24 अगस्त । स्थानकवासी जैन परम्परा के आज से आठ दिन तक मनाए जाने वाला पर्युषण पर्व प्रारंभ हो गए है। इसी क्रम में आज से आठ दिन तक गुरुप्रेमसुखधाम में प्रातःकाल 8.15 बजे से अंतगढ़ सूत्र की वाचना लोकमान्यसन्त श्री अनुपम मुनि जी मo के द्वारा किया जाएगा। आज से उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी है,दोपहर बाद 3 बजे से 4 बजे तक महामन्त्र नवकार का सामूहिक जाप किया जाएगा, श्री अनुपम मुनि ने सभी को
सपरिवार अधिक से अधिक धर्मलाभ लेने का आवाह्न किया । जैन परंपरा में पर्युषण पर्व का विशेष रूप से महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह जैन धर्म का पर्वों का पर्व महापर्व है इसे पर्युषण, पजुषन, प्रशमन आदि अनेक नाम से पुकारते हैं ।दिगंबर जैन परम्परा में इसे अष्ठानिका भी कहते हैं बाकी जैन परम्परा में स्थानकवासी तेरापंथ, मूर्तिपूजक जैन परम्परा में पर्वो का पर्व महापर्व पर्युषण नाम से जाना जाता हैं। इसे आत्मिक पर्व कहते है। वे दिन आठ दिनों के होते हैं।इन दिनों जैन समाज के सन्त साध्वी श्रावक,श्राविका परिचित भक्त श्रद्धा,आस्था से भरकर श्रीमत अन्तकृत दशांग सूत्र आठवे अंग सूत्र के रूप में पंच महाव्रत के धारी,समिति गुप्ति के पुजारी,सन्त साधु,यति सती सदगुरुदेव के मुखारविंद से व्रत उपवास,आत्मचिंतन आदि सामयिक साधना के साथ कथा श्रमण करने में अपना शोभाग्य मानते हैं
इन 8 दिनों में जैन लोग प्रतिदिन कथा सुनते हैं णमोकार महामंत्र का जाप करते हैं व्रत उपवास करते हैं प्रतिदिन दान पुण्य करते हैं, सामायिक संभल माला जाप आदि अनुष्ठान करते हैं कई लोग तो 8 दिन, महीने, सालभर का उपवास करते हैं कई लोग ध्यान आतम चिंतन आत्मध्यान में लगे रहते हैं कई लोग 8 दिन जनसभा में ही रह कर के आत्म चिंतन गुरु दर्शन शास्त्र सरवन धर्म कथाएं प्रतिदिन सुनते हैं।
जैसे हिंदुओं का पर्व शिवरात्रि होता है जन्माष्टमी होता है और नवरात्रि पर्व होते हैं इसी प्रकार से जैन परंपरा का पर्व पर्यूषण आध्यात्मिक आत्मिक पर्व है क्योंकि सभी पर्वों में कुछ ना कुछ खाया पिया जाता है घुमा फिरा जाता है आरंभ समारंभ होते हैं नाचने गाने सभी चलते हैं लेकिन यह पर्व आध्यात्मिक पर्व हैं इसीलिए इसे आत्मिक पर्व कहा जाता है। इस पर्व में नवकारसी पोरसी परपोषी एक आसना आयंविल और उपवास
किया जाता है।
हमारे भारतवर्ष में लौकिक पर्व भी हैं जैसे रक्षाबंधन दशहरा दीपावली और होली आदि, पर्वों को लौकिक पर्व कहते हैं लोक व्यवहार में चलने वाले पर्वों को लौकिक पर्व कहा जाता है और आध्यात्मिक पर्व को लोकोत्तर पर्व कहते हैं
गुरु प्रेमसुख धाम 16 नेशनल रोड लक्ष्मण चौक स्थानकवासी परंपरा के जैन संत जैन मुनि श्री अनुपम मुनि जी महाराज ने पर्वाधिराज पर्व पर्युषण का स्वागत करते हुए श्रीमद् भागवत संस्कृत अक्षांश सूत्र की वासनी करते हुए कहा यह पर्व आध्यात्मिक पर्व है इसीलिए आत्म चिंतन करते हुए अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए जिनवाणी सुनने के लिए तैयार रहें।
उन्होंने आगे कहा कि श्रीमद्भागवत अंतर्दशांग सूत्र में 99 आत्माओं का भगवान महावीर ने जिक्र किया हुआ है कि इन आत्माओं ने “जिन” साधना करके जैन भागवती दीक्षा लेकर जैन साधना करके जैन आराधना करके जैन तपस्या करके मुक्ति को प्राप्त किया इसलिए इस सूत्र को अंकित दशांग सूत्र कहते हैं
मुनि श्री ने आगे बताया कि इन दिनों दोपहर में कल्पसूत्र की आवाज नहीं होती है जिसमें भगवान महावीर 24 तीर्थंकर की जीवन गाथा स्तबिरों की स्त्रावी रावली और 10 प्रकार के कल्पर की मर्यादाओं की चर्चा विशेष रूप से की जाती है वह भी प्रेम सुखधाम ने दोपहर 3:00 से लेकर 4:00 तक सुनाया जाएगा।
मुनि श्री ने आगे बताया कि प्रेमसुख धाम में णमोकार मंत्र का जाप भी विशेष रूप से होगा आप इन सभी कार्यक्रमों में शामिल होकर धर्म लाभ लेवे।इस अवसर पर वर्धमान श्रावक संघ,भाग्य ज्योति महिला मंडल के सभी पदाधिकारियों सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।