कलयुग में प्रदोष व्रत को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्म उपाय माना गया है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, हिंदी पंचांग के प्रत्येक माह की दोनों त्रयोदशी की तिथि पर प्रदोष व्रत रखने का विधान है। मान्यता है कि त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में आनंद ताण्डव करते हैं तथा सभी देवता उनकी स्तुति करते हैं, इसलिए प्रदोष का व्रत रखने और प्रदोष काल में विधि –विधान से भगवान शिव की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आषाढ़ मास का पहला प्रदोष व्रत 7 जुलाई को दिन बुधवार को पड़ रहा है। बुधवार के प्रदोष को बुध प्रदोष भी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव का व्रत और पूजन करने से बुध दोष दूर होता है तथा सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। त्रयोदशी की तिथि 7 जुलाई को रात्रि 01 बजकर 02 मिनट से 8 जुलाई को प्रातः 03 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। प्रदोष का व्रत 7 जुलाई को रखा जाएगा। भगवान शिव की पूजा का विशेष मुहूर्त प्रदोष काल सायं 07:12 बजे से 9:20 बजे तक रहेगा। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष के दिन भगवान शिव का मां पार्वती के साथ पूजन करने के कुछ विशेष विधान हैं। प्रदोष काल में स्नान आदि करके दिन भर निर्जल या फलाहार व्रत रख कर पूजन करना चाहिए। मां पार्वती और भगवान शिव का जल से अभिषेक कर धूप, दीप तथा फूल अर्पित करें। भगवान शिव को बेलपत्र तथा माता पार्वती को लाल चुनरी और सुहाग का समान चढ़ाना चाहिए। शिव-पार्वती का विधि-पूर्वक पूजन करने से परिवार के सभी कष्ट दूर होते हैं।
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