चौथे खम्बे के मालिक भी खुली बहस में दिखे पराये! हलधर

गीत -चौथा खंबा
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चौथे खम्बे के मालिक भी खुली बहस में दिखे पराये ।
फसल जली तब मौन रहे वो धूँए पर जी भर चिल्लये ।।
छूट गयी पीछे रोशनियां सन्नाटों में कोलाहल है ।
हर चैनल पर हंगामा है मजहब की देखो हलचल है ।
आपा खोएं मुल्ले, पंडित जाति धर्म के धुंधले साये ।।
फसल जली तब मौन रहे वो धूँए पर जी भर चिल्लाये ।।1
दांत सींग नाखूनों वाले खद्दर पहने दिखे शिकारी ।
चंदन की डालों पर मानो लिपटे जैसे नाग पुजारी ।
विष का वमन सभा में करते, जहरीली जिभ्या फैलाये ।।
फसल जली तब मौन रहे वो धूँए पर जी भर चिल्लाये।।2
चौड़ी चौड़ी सड़कों पर भी तीखी कांटेदार हवाऐं ।
वायु ध्वनि के अतिक्रमण में सिर धुनती मीठी संध्याऐं ।
वातानूकूलित कारों में व्याकुल लोग दिखे मुरझाये ।।
फसल जली तब मौन रहे वो धूँए पर जी भर चिल्लाये ।।3
कोई जिक्र नहीं होता है भूख गरीबी बीमारी का ।
कोई राग नहीं गाता है गांव गली की लाचारी का ।
धर्म ध्वजा के वाहक बैठे जबड़ों में बारूद दबाये ।।
फसल जली तो मौन रहे वो धूँए पर जी भर चिल्लाये ।।4
मेरे सपनों की गगरी तो फूट गयी है कहीं खेत में ।
फसल सुरक्षा की डोरी भी ,टूट गयी है कहीं खेत में ।
शब्द हो गए मौन अर्थ में “हलधर” कैसे गीत सुनाये ।।
फसल जली तब मौन रहे वो धुंए पर जी भर चिल्लये।।5
हलधर -9897346173