देहरादून 19 जनवरी। उत्तराखण्ड जैव विविधता बोर्ड द्वारा देहरादूनी बासमती धान के संरक्षण एवं संवर्धन के अर्न्तगत एक महत्वपूर्ण कार्यशाला सभागार कक्ष जलागम प्रबन्धन निदेशालय, में आयोजित की गयी।
कार्यशाला में कृषकों, वैज्ञानिकों एवं ट्रेडर्स के समन्वय से देहरादूनी बासमती के संरक्षण हेतु भविष्य में एक मास्टर प्लान बनाने की रणनीति तैयार की गई। जिससे देहरादूनी बासमती धान की प्रजाति के कृषिकरण को बढावा देना एंव इस महत्वपूर्ण प्रजाति को भविष्य में संरक्षित किया जाना अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुबोध उनियाल, मा० मंत्री जी, वन, भाषा, निर्वाचन एवं तकनीकी शिक्षा, उत्तराखण्ड थे। डॉ० धनंजय मोहन, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड जैव विविधता बोर्ड, श्री आर.के. मिश्र, सदस्य सचिव, उत्तराखण्ड जैव विविधता बोर्ड, श्रीमती सोनम गुप्ता, खण्ड विकास अधिकारी सहसपुर, श्रीमती अर्पणा बहुगुणा, खण्ड विकास अधिकारी रायपुर, श्रीमती नीना ग्रेवाल, परियोजना निदेशक जलागम प्रबन्धन निदेशालय, उत्तराखण्ड तथा विभिन्न शोध संस्थानों के वैज्ञानिकों एवं संबन्धित क्षेत्र के दक्ष प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। डा० जे० अरविन्द कुमार भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, एवं आई० डी० पाण्डे जी०बी० पन्त कृषि विश्वविधालय के द्वारा देहरादूनी बासमती से संबन्धित विषय पर विडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से प्रतिभाग कर प्रस्तुतिकरण दिया गया।
मुख्य अतिथि श्री सुबोध उनियाल, मा० वन भाषा, निर्वाचन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री, उत्तराखण्ड द्वारा देहारादूनी बासमती संरक्षण हेतु चिंता व्यक्त की गई एवं बासमती संबन्धित कृषि भूमि को सर्वप्रथम संरक्षण करने की अपील की गई। बासमती चावल की खेती के लिए सिंचाई एवं विपणन की उचित व्यवस्था पर जोर दिया जाए। पार्वतीय क्षेत्रों में बासमती चावल की खेती बढावा दिया जाए।
उत्तरा रिसोर्स डेवलेपमेंट संस्था द्वारा उत्तराखण्ड जैव विविधता बोर्ड के सहयोग से देहरादूनी बासमती चावल टाइप-3 के संरक्षण पर शोध कार्य किया गया। शोध कार्य की रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2018 में जहां 680 किसानों द्वारा 410.18 हेक्टेयर भूमि में देहरादूनी बासमती चावल की खेती करते थे वही वर्ष 2022 में देहरादूनी बासमती चावल की खेती घट कर 157.83 हेक्टेयर रह गयी।