चुनाव के बाद जारी है भाजपा के बड़े नेताओं में मुलाकातों का दौर।

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देहरादून। चुनाव के बाद उत्तराखण्ड भाजपा में अंर्तकलह उजागर हो रही है। तों वही उत्तराखण्ड भाजपा के बड़े नेता एक दुसरे के मुलाकात कर रहे है। जिनके राजनीतिक हलकों में कई मायने निकाले जा रहे है। राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी में कहीं धड़े बाजी को बढ़ावा न मिले इसलिए पार्टी आलाकमान के निर्देश पर भाजपाई एक जुट होने का प्रयास कर रहे है। वहीं दुसरी ओर चर्चा यह भी है कि यदि भाजपा सत्ता में वापसी करती है तो सीएम पद पर कौन काबिज होगा इसके लिए भी अभी से आपसी सहमती बनाई जा रही है।
बीजेपी के बड़े नेताओं में इन दिनों मुलाकातों का दौर चल रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक राज्य के कई सीनियर नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। चुनाव नतीजों से पहले हो रही इन मुलाकातों को लेकर कई तरह की चर्चाएं भी चल रही हैं. असल में ये सुगबुगाहटें तब तेज़ हुईं जब पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत के यहां पहले सीएम धामी पहुंचे और उसके बाद मदन कौशिक ने भी रावत के यहां पहुंचकर मुलाकात की. यही नहीं, धामी और कौशिक दोनों पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक के यहां भी पहुंचे. सवाल है कि इन मुलाकातों का क्या अर्थ है।
क्या 10 मार्च से पहले बीजेपी के बड़े नेता मैनेजमेंट में जुट गए हैं या फिर चुनाव से पहले नेता आपसी मेलजोल बढ़ा रहे हैं। चूंकि त्रिवेंद्र ने डोईवाला सीट छोड़ते हुए इस बार चुनाव लड़ने से मना तक कर दिया था। तो अब चर्चा इस तरह भी है कि चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने त्रिवेंद्र रावत को पूरी तरह से अनदेखा किया, उन्हें अब तवज्जो क्यों दी जा रही है। इस बारे में सीएम धामी ने साफ कह दिया कि वो सबसे मिलेंगे, ‘लेकिन किसी को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिखती हो, तो मैं कुछ नहीं कह सकता।’ धामी ने अब तक निशंक और त्रिवेंद्र से मिलने की पुष्टि करते हुए कहा कि वह तीरथ रावत, विजय बहुगुणा और दूसरे पदाधिकारियों से भी मिलेंगे। राजनीतिक दलों में नेताओं में नज़दीकी और नाराज़गी वक़्त और हालात पर निर्भर करती है, तो क्या मीटिंगों के ज़रिये बड़े नेता गिले-शिकवे मिटा रहे हैं। ताकि किसी भी नेता की नाराज़गी पार्टी को मुश्किल में न डाले। मदन कौशिक का कहना है कि नेताओं के बीच मुलाकात एक शिष्टाचार है, नाराज़गी या मैनेजमेंट जैसी कोई बात नहीं है। इधर, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत भी नाराज़गी की बातों को पूरी तरह नकार रहे हैं। त्रिवेंद्र का कहना है कि नाराज़गी जैसी कहीं कोई बात नहीं है। चाहे तीरथ सिंह रावत रहे हों, या पुष्कर धामी, दोनों ने बेहतर काम किया है। इन जवाबों के बाद साफ है कि नेता भीतर की स्थिति पर कहने से बच रहे हैं। जबकि हाल में, मदन कौशिक पर पार्टी के ही कुछ विधायक गंभीर आरोप लगा चुके हैं, तब इन मुलाकातों का होना और त्रिवेंद्र रावत का मुलाकातों के केंद्र में आना सिर्फ शिष्टाचार भेंट तो नहीं हो सकता।