पीएम केयर्स फंड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने कहा कि पीएम केयर्स फंड का पैसा नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) में ट्रांसफर करने का आदेश नहीं दे सकते। ये दोनों अलग-अलग फंड हैं। साथ ही कहा कि कोई व्यक्ति एनडीआरएफ में कंट्रीब्यूशन देना चाहे तो उस पर भी पाबंदी नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नई आपदा राहत योजना की जरूरत नहीं है।
सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) एनजीओ ने इस मामले में पिटीशन लगाई थी। सीपीआईएल का कहना था कि पीएम केयर्स फंड बनाकर सरकार ने आपदा प्रबंधन कानून की अनदेखी की है। सीपीआईएल की दलील थी कि आपदा प्रबंधन के लिए किसी भी व्यक्ति या संस्था से दान में मिलने वाली रकम नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) के खाते में डाली जानी चाहिए। पीएम केयर्स फंड में जो भी रकम मिली है, उसे भी एनडीआरएफ में ही ट्रांसफर किया जाए।
पीएम केयर्स फंड क्या है?
सरकार ने 28 मार्च को पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के तौर पर यह फंड बनाया था। इसका मकसद कोरोना जैसी इमरजेंसी से निपटने के इंतजाम करना था। कोरोना काल में कॉरपोरेट से लेकर इंडिविजुअल तक ने इस फंड में डोनेशन दी।
आपत्ति क्यों उठी?
सीपीआईएल एनजीओ का कहना था कि डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की धारा 46 के तहत नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फंड में दान की रकम जमा करने की व्यवस्था है, तो फिर कोरोना से लड़ाई के लिए मिलने वाली डोनेशन पीएम केयर्स फंड में जमा क्यों करवाई जा रही है? पीएम केयर्स फंड का कैग से ऑडिट भी नहीं करवाया जा रहा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस फंड पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि इस फंड में डोनेशन देने वालों का नाम बताने से प्रधानमंत्री क्यों डरते हैं?
सरकार ने क्या कहा?
सरकार ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया था। उसका कहना था कि कोरोना से राहत के कामों के लिए पीएम केयर्स फंड बनाया गया था। पहले भी ऐसे कई फंड बनाए जाते रहे हैं। एनडीआरएफ जैसा संवैधानिक फंड होने का मतलब यह नहीं है कि वॉलेंटरी डोनेशन के लिए पीएम केयर्स जैसे दूसरे फंड नहीं बनाए जा सकते। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि पीएम केयर्स फंड बनाने का मकसद एनडीआरएफ को फेल करना नहीं था, जैसा कि पिटीशनर ने आरोप लगाया है।