“जीव” माया के सीमित दायरे में है: आचार्य ममगांई
देहरादून 21 नवम्बर। सर्व व्यापी – ईश्वर सर्व व्यापक है पर जीव सीमित है एक जगह पर एक समय ही रह सकता है पर ईश्वर हर समय हर जगह विद्यमान है, जीव सर्व व्यापी नहीं है माया के सीमित दायरे में है क्योंकि जीव अनेक हैं निश्चित काल , देश , अवस्था, परिस्थिति के अधीन है पर ईश्वर माया पति होने से सर्व व्यापी है पहले शुद्ध ब्रह्म माया के साथ मिलकर ईश्वर का रूप धारण करता है पश्चात् जीव जगत में परिवर्तित हो जाता है तो भी ईश्वर अपने ऐश्वर्य अस्तित्व में बना रहता है। यह बात आज मन्दाकिनी विहार सहस्त्र धारा रोड़ शर्मा वन्धुओं के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन ज्योतिष्पीठ व्यास पदालंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई जी ने कही कुछ वहीं आज प्रथम दिवस मन्दाकिनी विहार शिव मंदिर से ढोल की थाप के साथ साथ सैकड़ों की संख्या मे पीत वस्त्र पहनें सर पर जल कलश लिए महिलाओं की गोपाल जी का स्नान कराने के बाद आचार्य नें कहा कि तिनोगुणों से परे सतोगुणी माया उपाधि – ब्रह्म का शुद्ध सतोगुणी माया पर पड़ने वाला चैतन्य ईश्वर है इसीलिए ईश्वर सतोगुणी माया उपाधि वाला है, और स्वरूप से ब्रह्म या आत्मा ही है ईश्वर को अपने स्वरूप का बोध है पर जीव को नहीं जिस कारण ईश्वर सृष्टि करता हुआ भी अकर्ता है निष्काम है अपने स्वरूप में स्थित है।
,, वास्तव में एक ब्रह्म ही माया की उपाधि धारण कर ईश्वर बन जाता है वही ब्रह्म अविद्या की उपाधि धारण कर जीव बन जाता है अतः जीव यदि अविध्या रुपी अज्ञान के बंधन को काट दे तो जीव भी तत्व से वही ब्रह्म है,
यदि जीव अपने आत्मा का साक्षात्कार कर ले वह अपने सच्चिदानंद स्वरुप को प्राप्त हो जायेगा..!!
आज विशेष ब्रह्म किशोर शर्मा,दिव्य वत्स शर्मा,श्रीमती प्रियंका शर्मा,पुत्री शानवी नन्दनी, डाक्टर मधुकर मलेठा डाक्टर ,वत्सला मवेठा,आचार्य अंकित ममगांई,आचार्य सन्दीप बहुगुणा,आचार्य हिमांशु मैठानी,आचार्य हर्ष मणी घिल्ड़ियाल ,आचार्य जितेंद्र धस्माना अनील चमोली सुनील नौटियाल सजविणस आदि उपस्थित रहे।



