दलहन आत्मनिर्भरता मिशनः किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में देश का बड़ा प्रयास

दलहन, भारत की खाद्य और कृषि परंपराओं का एक अभिन्न अंग हैं, जो नागरिकों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ करोड़ों किसानों को आजीविका भी प्रदान करती हैं। दलहन, स्वास्थ्यप्रद होने के साथ-साथ प्रोटीन का भी एक प्रमुख स्रोत हैं।
माननीय प्रधानमंत्री जी ने दिनांक 11 अक्टूबर, 2025 को वर्ष 2030-31 तक दलहन आत्मनिर्भरता में वृद्धि करने हेतु 11,440 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ “दलहन आत्मनिर्भरता मिशन” का शुभारंभ किया। इस अवसर पर, प्रधानमंत्री जी ने कहा, “दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन का उद्देश्य न सिर्फ दाल उत्पादन में वृद्धि करना है, अपितु पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराकर भावी पीढ़ियों को सशक्त बनाना भी है। ”
मिशन का उद्देश्य, उच्च उपज वाले बीजों और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करने के साथ-साथ दलहन की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए पोषण सुरक्षा प्राप्त करने पर केन्द्रित है।
दलहन उत्पादन की चुनौतियाँ
भारत में फसल वर्ष 2014-2016 के दौरान दलहन उत्पादन कम हुआ, इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, भारत सरकार ने उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इन निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप, दलहन उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
यद्यपि घरेलू दलहन उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है फिर भी दलहन की खपत आपूर्ति से अधिक बनी हुई है, जिसके फलस्वरूप समय-समय पर दालों के आयात की आवश्यकता पड़ती है। लंबे समय से आ रही आयात की चुनौतियों को दूर करने हेतु दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता आवश्यक है।
अधिकांशतः वर्षा सिंचित दलहन फसलें अनियमित वर्षा और सूखा, दोनों ही स्थितियों से प्रभावित होती हैं। मौसम संबंधी अनिश्चितताओं के अलावा, कीटों और रोगों का खतरा तथा उन्नत बीजों की सीमित उपलब्धता के कारण कम उत्पादकता भी दलहन के उत्पादन को प्रभावित करती है।
“दलहन आत्मनिर्भरता मिशन” में पाँच वर्षों की लक्षित अवधि के भीतर भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को बदलने की अपार क्षमता है। इस मिशन का उद्देश्य उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि करके इन चुनौतियों का सामना करना है इसमें दलहन की खेती किसानों के लिए अधिक लाभदायक और विश्वशनीय बनेगी साथ ही साथ राष्ट्र के लिए एक स्थाई और प्रोटीन युक्त खाद्य स्रोत सुनिश्चित होगा।
दलहन में आत्मनिर्भरता हेतु रणनीति
“दलहन आत्मनिर्भरता मिशन”, बीज से लेकर बाजार तक, एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए इस अंतर को कम करने का प्रयास करता है, जिससे अंततः उत्पादन, उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि होगी। यह मिशन, प्रभावी कार्यान्वयन और व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए किसान उत्पादक संगठनों और सहकारी समितियों की अधिक भागीदारी के साथ एक क्लस्टर-आधारित कार्यनीति का पालन करेगा। लक्षित उपायों के साथ क्षेत्र और उपज क्षमता के आधार पर फसल विशिष्ट क्लस्टर विकसित किये जाएंगे।
इस मिशन के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह जैसे संस्थानों की मदद से अधिक उपज वाले, जलवायु-सहिष्णु और उच्च तापमान प्रतिरोधी बीज विकसित किए जाएंगे। यह मिशन, एक प्रभावी बीज श्रृंखला के माध्यम से अधिक उपज देने वाली किस्म के बीजों के उत्पादन और वितरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करेगा। इससे गुणवत्तापूर्ण ब्रीडर, फाउंडेशन और प्रमाणित बीजों की किसानों तक पहुंच सुनिश्चित होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों और राज्य कृषि विभागों द्वारा प्रदर्शन के माध्यम से किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियों से अवगत कराया जाएगा। लक्षित चावल परती भूमि में संभावित विस्तार, फसल विविधीकरण और अंतर-फसली के जरिए दलहन की खेती के अंतर्गत क्षेत्र विस्तार में सहायता मिलेगी।
आत्मनिर्भर दलहन की दिशा में सशक्त पहल
फसलोपरांत नुकसान को कम करने और किसानों को बेहतर मूल्य उपलब्ध कराने में सहायता हेतु देशभर में 1000 प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित की जाएँगी। आगामी चार वर्षों तक सभी पंजीकृत और इच्छुक किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तुअर, उड़द और मसूर की खरीद की सुविधा सुनिश्चित की जाएगी। आशा है कि इन प्रयासों से किसानों में विश्वास बढ़ेगा, कीमतों में स्थिरता आएगी और सतत आय सुनिश्चित होगी। ऐसे सकारात्मक प्रयास, अधिक से अधिक किसानों को दलहन की खेती करने तथा क्षेत्र विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित कर, दलहन की खेती में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकते हैं। यह मिशन अधिक उत्पादन और उचित मुनाफा सुनिश्चित कर, दलहन की खेती करने वाले किसानों में विश्वास जागृत करेगा और देश के प्रोटीन-आधार को सुदृढ़ बनाएगा।
इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक, दलहन की खेती के क्षेत्रफल को वर्ष 2023-24 में 275 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़ाकर 310 लाख हेक्टेयर करना और उत्पादन को 242 लाख टन से बढ़ाकर 350 लाख टन करना तथा दलहन उत्पादकता के स्तर को 881 किग्रा/हेक्टेयर से बढ़ाकर 1130 किग्रा/हेक्टेयर करना है। इस मिशन से सीधे तौर पर लगभग 2 करोड़ किसानों को सीधे लाभान्वित होने की आशा है।
उत्पादन लक्ष्यों से परे, इस मिशन में दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सतत और जलवायु-अनुकूल कृषि को अपनाने की परिकल्पना की गई है, जिससे जल संरक्षण होगा और नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य समृद्ध होगा तथा रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी।
खेत–खलिहानों में हरियाली, भविष्य में खुशहाली
सरकार का लक्ष्य, इस मिशन को सूक्ष्म सिंचाई, मशीनीकरण, फसल बीमा और कृषि ऋण जैसी तत्कालीन योजनाओं से जोड़कर, दीर्घकालिक स्थिरता के लिए सहक्रिया और संयोजन को बनाना है। इसके अतिरिक्त, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और संपूर्ण दलहन मूल्य श्रृंखला को बढ़ाने में सहायता की जाएगी।
यह मिशन, भारत के विज़न 2047 के अनुरूप है, जो खाद्य-सुरक्षा, सतत और आत्मनिर्भर कृषि क्षेत्र की परिकल्पना करता है। किसानों को बेहतर बीज, सुनिश्चित बाज़ार और आधुनिक तकनीक प्रदान कर, सरकार एक दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है, जो किसान और मिट्टी दोनों को महत्व देती है।
जैसे-जैसे भारत दलहन में आत्मनिर्भरता के निकट पहुँच रहा है, यह मिशन खाद्य और पोषण सुरक्षा की दिशा में देश की यात्रा का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। अंततः “दलहनों में आत्मनिर्भरता मिशन“ फसलों में निवेश से कहीं अधिक है, यह आत्मविश्वास में निवेश हैः किसानों का आत्मविश्वास जो अब इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि उनकी उपज का मूल्य और भविष्य दोनों सुरक्षित हैं।


