कुचिपुड़ी नृत्यांगना अरुणिमा कुमार की मनमोहक प्रस्तुति से विरासत में छाई भक्ति की लहर
अनमोल रत्नों में शुमार परवीन सुल्ताना की गायकी ने मचाया धमाल
विरासत महोत्सव में नन्हे मुन्ने बच्चों ने सीखे मिट्टी के बर्तन,पतंग व अन्य क्राफ्ट आइटम बनाने की विधि
यूपीईएस में विरासत द्वारा आयोजित “पत्थरों का संगीत” के टॉक शो में ऐतिहासिक जानकारी का किया बखान
देहरादून 15 अक्टूबर । विरासत महोत्सव में आजभी भिन्न-भिन्न स्कूलों के बच्चों ने प्रतिभाग कर तरह-तरह की कलाओं में अपने-अपने हुनर का शानदार प्रदर्शन किया I मिट्टी के छोटे-छोटे बर्तन बनाने की अनमोल कला के साथ-साथ, कागज़ की पतंग व खूबसूरत कागज के फूल तथा पत्तियां आदि बनाने के अलावा भिन्न भिन्न प्रकार की बोतल पेंटिंग एवं अन्य सामग्री पर कलाकारी कर अपने हुनर का बेहतरीन प्रदर्शन किया I
महोत्सव में बच्चों के लिए पेंटिंग एवं अन्य भिन्न-भिन्न कलाओं से संबंधित हुनर दिखाने का अवसर प्रदान किया गया, जिसमें बच्चों ने अपनी-अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते हुए विरासत में अपनी यादों को समाहित कर लिया I बच्चों की भिन्न-भिन्न कलाकृति के साथ-साथ आज डॉल्फिन इंस्टीट्यूट सुद्धोवाला में शिक्षा ग्रहण कर रहे मेघालय के करीब 30 छात्र छात्राओं ने विरासत मौसम में लगे अनेक स्टॉल पर जाकर क्राफ्ट से बने सामानों की कला कृतियों को परखा और उनके बारे में स्टॉल के संचालक से सीखने व समझने का हुनर का प्राप्त किया I विरासत में राजस्थान से आए हैंडीक्राफ्ट ज्वैलरी के संचालक रवि मिश्रा से डॉल्फिन इंस्टीट्यूट के छात्र-छात्राओं ने कलाओं की बारीकियों के बारे में समझा I”आगरा का ज़ायका उत्तराखंड में महका” नामक स्टॉल पर विभिन्न प्रकार के बनाए वस्त्रों के बारे में भी छात्र-छात्राओं ने उत्सुकतापूर्वक संचालक लक्की रावत से जानकारी प्राप्त की I इसके अलावा विरासत में छात्र-छात्राओं ने “निकम्मी औलाद” नामक स्टॉल पर जाकर भी क्राफ्ट कला का हुनर दिखाते हुए मग, बैग तथा अन्य आकर्षक आइटमों पर की गई कला की पारखी को समझा I इस स्टॉल पर निकम्मी औलाद के लेवल वाली टी-शर्ट, जैकेट, हुड आदि की रिपोर्टिंग भी डॉल्फ़िन इंस्टीट्यूट सुद्धोवाला के छात्र छात्राओं ने करने में उत्साह और उमंग दिखाया I कुल मिलाकर आज विरासत में सुबह के प्रथम सत्र में क्राफ्ट कार्यशाला के दौरान छात्र छात्राओं ने उत्साह पूर्वक प्रतिभाग कर भरपूर आनंद भी लिया I दिल्ली के देवेंद्र चाचा से मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि को आज भी स्कूली बच्चों ने उत्साह पूर्वक सीखा I वहीं आयोजित की गई क्राफ्ट कार्यशाला में स्कूल के बच्चों ने रामपुर, उत्तर प्रदेश के शावेज मियां से पतंग बनाने के हुनर को भी सीखा I
आज की शानदार एवं शाही विरासत के मुख्य अतिथि मशहूर हेरिटेज एक्टिविस्ट श्री सोहेल हाशमी और प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखंड (हॉफ) समीर सिन्हा ने संयुक्त रूप से विरासत महोत्सव की संध्या का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर किया
कुचिपुड़ी नृत्यांगना अरुणिमा कुमार की मनमोहक प्रस्तुति से विरासत में छाई भक्ति की लहर
कुचिपुड़ी नृत्यांगना अरुणिमा कुमार की मनमोहक प्रस्तुति से विरासत में आज भक्ति की लहर दौड़ गई I उन्होंने सूर्य स्तुति, अर्धनारीश्वर, देव देवम भजे, कलिंग नर्तनम, शिव तरंगम व दुशासन वध गीतों की प्रस्तुति देकर मन मोह लिया I अर्धनारीश्वर नृत्य कि प्रस्तुति राग मालिका में ताल मालिका से हुई। उसके बाद उनकी अगली प्रस्तुति कलिंग नारायणम एक थिल्लाना रहा जिसमें बाल कृष्ण को कालिया सर्प को पराजित करते हुए तथा उसके सिर पर नृत्य करते हुए दर्शाया गया है। कुचिपुड़ी नृत्य की प्रस्तुति में शामिल कलाकारों में क्रमशः कोर्नेलिया, बिद्या, अरुणिमा कुमार रहे I
भारतीय शास्त्रीय संगीत में अनमोल सितारा माने जाने वाली आरुणिमा कुमार कुचिपुड़ी के लिए 2008 के संगीत नाटक अकादमी युवा पुरस्कार विजेता हैं। मात्र 9 साल की छोटी बच्ची के रूप में उन्होंने बैले आम्रपाली में अभिनय किया और कुचिपुड़ी नृत्य अकादमी ने उन्हें औपचारिक रूप से वर्ष 1995 में लॉन्च किया, जहाँ उन्होंने नई दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में अपना अरंगेत्रम प्रस्तुत किया I उन्हें संगीत नाटक अकादमी (भारत गणराज्य द्वारा स्थापित भारत की राष्ट्रीय अकादमी) द्वारा 2008 का प्रतिष्ठित उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । वर्तमान में वह लंदन में रहती हैं और एरिसेंट समूह में मानव संसाधन सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं I हैरानी की बात यह है कि अरुणिमा ने 7 साल की उम्र में कुचिपुड़ी सीखना शुरू कर दिया था और पद्म भूषण श्रीमती स्वप्ना सुंदरी से प्रारंभिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। वह पद्मश्री गुरु जयराम राव और वनश्री राव की वरिष्ठ शिष्या हैं और 15 वर्षों से अधिक समय से नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं। इस अरुणिमा ने प्रतिष्ठित सांस्कृतिक समारोहों और स्थलों पर कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रस्तुतियाँ दीं। उन्होंने कई बैले में भी प्रदर्शन किया है, जैसे चित्रांगदा बैले, जहाँ उन्होंने चित्रांगदा की भूमिका निभाई I नल दमयंती, जहाँ उन्होंने दमयंती की भूमिका निभाई। अरुणिमा को 1998 में नृत्य के लिए साहित्य कला परिषद छात्रवृत्ति और 2001 में सुर श्रृंगार संसद द्वारा श्रृंगारमणि उपाधि से भी सम्मानित किया गया। वह आईसीसीआर के साथ एक स्थापित कलाकार के रूप में सूचीबद्ध हैं। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय की सदस्य और आकाशवाणी एवं दूरदर्शन की ए ग्रेड कलाकार हैं। वह युवाओं के बीच कला को बढ़ावा देने, छोटे शहरों और गाँवों में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए आउटरीच के क्षेत्र में परियोजनाओं की संकल्पना और कार्यान्वयन, आर्ट्स एक्सटेंड की अवधारणा और कार्यान्वयन के लिए अपना स्वयं का कला फाउंडेशन बना रही हैं।
अनमोल रत्नों में शुमार परवीन सुल्ताना की गायकी ने मचाया धमाल
पदमश्री और पद्म भूषण से सम्मानित-सुशोभित मशहूर गायिका बेगम परवीन सुल्ताना ने अपने गायकी राग की शुरुआत राग मारू बिहागप से विलम्बित ख्याल और धृत ख्याल से की।उनकी अगली प्रस्तुति राग मिश्र पहाड़ी में ठुमरी रही , “सैंयां गए परदेस..” इस दौरान उनके साथ हारमोनियम पर पंडित विनय मिश्रा, तबले पर उस्ताद अकरम खान और तानपुरा पर खुशी ने बेहतरीन संगत दी। आज की इसी शानदार महफिल में उनके साथ उनकी बेटी शादाब खान ने भी तानपुरा पर संगत की।
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की दुनिया के अनमोल रत्नों में शुमार लोकप्रिय गायक बेगम परवीन सुल्ताना की गायकी ने आज विरासत महोत्सव में अपनी अद्भुत गायकी से धूम मचा डाली I पटियाला घराने की एक भारतीय हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका हैं। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्म भूषण तथा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । परवीन सुल्ताना की आवाज़ अपनी असाधारण विविधता, स्पष्टता और बहुमुखी प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध है। हैरानी की बात यह है कि लगभग चार सप्तकों में फैली वह एक पल में धैर्यपूर्ण ध्यान से लेकर ईश्वर के शक्तिशाली आह्वान तक पहुँच सकती हैं। ख़याल, ठुमरी या भजन बजाने में समान रूप से निपुण वह एक आधुनिक हिंदुस्तानी गायिका हैं। अफ़ग़ान विरासत के एक संगीत परिवार में जन्मी परवीन सुल्ताना ने बचपन से ही अपनी अनूठी शैली विकसित करना शुरू कर दिया था। पाँच साल की उम्र में उनकी मां ने उनके पिता की गोद में बैठकर उनके संगीत के साथ गुनगुनाने की उनकी प्रतिभा को पहचाना और इसके तुरंत बाद उन्होंने औपचारिक प्रशिक्षण शुरू किया। उन्होंने शास्त्रीय संगीत के महान कलाकारों के साथ लता मंगेशकर की आवाज़ को आत्मसात किया तथा बारह साल की उम्र में सार्वजनिक रूप से अपनी शुरुआत की। उन्होंने प्रसिद्ध विद्वान-संगीतज्ञ पंडित चिन्मय लाहिड़ी से शिक्षा प्राप्त की, जो नौ विभिन्न घरानों के विचारों को एक साथ लाने के लिए प्रसिद्ध थे।
बेगम परवीन सुल्ताना ने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत अब्दुल मजीद की असमिया फिल्म मोरोम तृष्णा से की थी। उन्होंने गदर, कुदरत, दो बूंद पानी और पाकीज़ा जैसी बॉलीवुड फिल्मों और कई अन्य असमिया फिल्मों के लिए गायन किया है। फिल्म कुदरत के सदाबहार गीत, हमें तुमसे प्यार कितना…… की गायिका ने अपनी लगभग साढ़े चार सप्तक की अद्भुत स्वर-सीमा का प्रदर्शन किया है। उन्हें गंधर्व कलानिधि, मियां तानसेन पुरस्कार और असम सरकार द्वारा प्रदान किए गए संगीत सम्राज्ञी सहित कई पुरस्कारों के सम्मान से नवाजा जा चुका है।
मशहूर हेरिटेज एक्टिविस्ट सोहेल हाशमी का टॉक शो कई मायनों में रहा महत्वपूर्ण
यूपीईएस में विरासत द्वारा आयोजित “पत्थरों का संगीत” के टॉक शो में ऐतिहासिक जानकारी का किया बखान
प्रसिद्ध इतिहासकार और कहानीकार सोहेल हाशमी का आज दून में भव्य स्वागत हुआ I उन्होंने आज यहां यूपीईएस में विरासत द्वारा आयोजित किए गए “पत्थरों का संगीत” पर टॉक शो में इतिहास से संबंधित कई रोचक जानकारियां दी I यूपीईएस यूनिवर्सिटी में आयोजित इस टॉक शो में हाशमी ने अपने आकर्षक सत्र की शुरुआत करते हुए कहा कि सभ्यता की शुरुआत कृषि और मिट्टी के बर्तनों से हुई थी, जिसने मनुष्य की प्रगति को आगे बढ़ाते हुए प्रगति की नींव रखी। उन्होंने इथियोपियाई, इंका, हड़प्पा और रोमन (एम्फोरा) परंपराओं सहित विभिन्न सभ्यताओं में मिट्टी के बर्तनों के विकास पर विस्तार से प्रकाश डाला और महत्वपूर्ण जानकारियां दी। वास्तुकला की ओर बढ़ते हुए उन्होंने मटका और घड़ा जैसे मिट्टी के बर्तनों के सांस्कृतिक महत्व और भुज (2004) में खोजे गए भंडारण घड़ों के कार्यात्मक उपयोग पर भी श्री हाशमी ने चर्चा की, जिनका उपयोग भोजन, बीज और कपड़े के भंडारण के लिए किया जाता था। उन्होंने लिंग आधारित श्रम विभाजन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए आयोजित टॉक शो के दौरान कहा कि आखिर कैसे पारंपरिक रूप से महिलाएँ राजस्थान में मटका का उपयोग करके पानी लाने जैसे व्यावहारिक कार्य करती थीं, जबकि पुरुष निर्णय लेने की भूमिका में थे। उन्होंने इस विडंबना पर भी ज़ोर दिया कि रोज़ाना खाना बनाने वाली महिलाओं को भुगतान नहीं किया जाता, जबकि पुरुष रसोइयों को मान्यता और भुगतान मिलता है, जो श्रम विभाजन में सामाजिक रूढ़िवादिता को दर्शाता है।
इसके अलावा श्री हाशमी ने वास्तुकला में कलश के प्रतीकवाद पर चर्चा की और बताया कि शुरुआत में यह जल और बीजों के पात्र का प्रतिनिधित्व करता था, लेकिन बाद में यह मार के गर्भ का प्रतीक बन गया, इसलिए इसे गर्भ कलश कहा जाता है, जो जीवन और उर्वरता का प्रतीक है। उन्होंने कमल को एक पवित्र और शुद्ध प्रतीक के रूप में भी वर्णित किया, जो सभी संस्कृतियों और धर्मों में पूजनीय है और सिद्धसेनापति,अवलोकितेश्वर और पद्मसंभव जैसे देवताओं द्वारा धारण किया जाता है।
विभिन्न धर्मों के बीच समानताएँ दर्शाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि कैसे मैत्रेय बुद्ध, कल्कि अवतार और पैगंबर को क्रमशः बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और इस्लाम में उद्धारकर्ता के रूप में देखा जाता है। इसके बाद उन्होंने सूर्य, कमल और अमलका के बीच प्रतीकात्मक संबंधों का पता लगाया और बताया कि कैसे ये तत्व मिलकर दिव्य स्थापत्य रूपांकनों का निर्माण करते हैं। उन्होंने डेविड के तारे और शिव और शक्ति के मिलन को दर्शाने वाले तांत्रिक प्रतीकों पर भी ऐतिहासिक ज्ञान को साझा।