मशहूर उषा उत्थुप के डिस्कोथेक पर झूम उठी विरासत संध्या की शाही महफिल
…..और उषा उत्थुप ने बना लिया सभी को अपना “दीवाना”
हजारों युवाओं के दिलों-दिमाग पर ही नहीं, बल्कि सभी उम्र के लोगों पर अपनी आवाज के जादू में पिरो लिया इस महान गायक संगीतकार ने
उत्थुप देखते ही देखते बन गई विरासत की “सबसे मस्त हीरो”
उषा उत्थुप की अदा पर भी फिदा हुए उत्थुप के दीवाने…..
देहरादून 14 अक्टूबर।
विरासत महोत्सव में आज मंगलवार को एक ऐसे शाही शास्त्रीय संगीत के कलाकार का बहुत ही बेहतरीन एवं आकर्षक आवाज के साथ पदार्पण हुआ, जिसने सभी युवा दिलों पर ही अपना जादू नहीं किया, बल्कि विरासत के आज के हजारों मौजूद रहे मेहमानों के दिलों दिमाग पर भी अपनी प्रस्तुति से जादू कर डाला I जी हां, आपने सही अंदाजा लगाया और वह मशहूर नाम उषा उत्थुप का ही है, जिसने आज विरासत की महफिल को अपने भव्य व आकर्षक गीतों से सजा डाला और सभी को मदहोश कर डाला I उषा उत्थुप की आवाज का जादू सुनने के लिए विरासत के लाखों प्रशंसा इस विरासत के शुरू होने के बाद से ही बेकरार नजर आ रहे थे और वह दिन आज आ ही गया, जब अपनी जादुई प्रस्तुतियों से उषा उत्थुप ने सभी को अपने गीतों पर झूमने और थिरकने पर मजबूर कर दिया I उषा उत्थुप द्वारा शिव आराधना के भक्ति गीत पर झूमे श्रोतागण और प्रशंस…
उषा उत्थुप 54 वर्षों से भी अधिक समय से संगीत के माध्यम से सीमाओं को पार कर रही हैं और संगीत के माध्यम से प्रेम, एकता, शांति, सद्भाव, सहिष्णुता, अखंडता और खुशी का संदेश के प्रकाश को भी फैला रही हैं। डिस्कोथेक से लेकर भारत और दुनिया भर के संगीत समारोहों तक, उन्होंने युवाओं को संगीत के उन मूल्यों के बारे में बताया है, जो हमें इंसान बनाते हैं। वह अपने विश्वास के अनुसार जीती हैं, पारंपरिक परिधानों में सजे सबसे समकालीन गीतों को भी प्रस्तुत करती हैं और इस तथ्य को दर्शाती हैं कि भारत अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के साथ विश्व संस्कृतियों का एक सच्चा मिश्रण है। वह एक पारंपरिक मध्यम वर्गीय दक्षिण भारतीय परिवार से आती हैं। उनके करियर की शुरुआत 1969 में चेन्नई के नाइन जेम्स नामक नाइट क्लब से हुई और उन्होंने सौ से ज़्यादा एल्बम रिकॉर्ड किए हैं। वह सत्रह भारतीय भाषाओं और आठ विदेशी भाषाओं में गाती हैं।
उषा की धुन एक सार्वभौमिक भाषा बोलती है और धर्म, नस्ल, राष्ट्रीयता और जाति से परे है। उन्होंने दूर-दराज की संस्कृतियों के लोगों को एक भारतीय महिला की अप्रत्याशित छवि मजबूत, स्वतंत्र, विनोदी, बुद्धिमान और प्रतिभा से भरपूर रूप में दी है ।
खास बात यह है कि उन्होंने मदर टेरेसा के मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के लिए काम किया है और कोलकाता के कालीघाट स्थित शिशु भवन, प्रेम दान के लिए धन जुटाया है। उन्हें गीतों के माध्यम से दुनिया भर के समुदायों को एक साथ लाने में योगदान के लिए केन्या की कुंजी से सम्मानित किया गया था।उन्होंने कैंसर, एड्स, महिला तस्करी, बाल शोषण पर शोध में सहयोग देने के लिए अनगिनत गैर सरकारी संगठनों और सरकार के साथ काम भी किया।
उन्होंने एड्स के लिए रिचर्ड गेरे फाउंडेशन के साथ काम किया है। महिला सशक्तिकरण से संबंधित गैर सरकारी संगठनों, स्वयं, लाडली और दक्षिण भारत के कई अन्य संगठनों के साथ काम किया है। उन्होंने सड़क पर रहने वाले बच्चों और रेड लाइट एरिया से आने वाले बच्चों के लिए काम करने के साथ ही यूरोप, अफ्रीका और एशिया में आईसीसीआर के माध्यम से भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। उन्हें वर्ष 2011 में प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार मिला। इसके अलावा उन्होंने दावोस में विश्व पर्यावरण मंच पर एक टेड वक्ता के रूप में अपनी प्रस्तुति दी, जिसे दर्शकों ने खड़े होकर सराहा। अन्य पुरस्कारों की श्रृंखला में उषा उत्थुप को जो अन्य सम्मान, पुरस्कार मिले हैं उनमें क्रमशः 2011 में फिल्म फेयर पुरस्कार, वर्ष 2024 में प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार मुख्य रूप से शामिल हैं I
उन्होंने कुछ मलयालम, तमिल, कन्नड़ के साथ-साथ हिंदी और भारतीय फिल्मों में एक गायिका और अभिनेत्री के रूप में अभिनय करियर में भी एक दिलचस्प शुरुआत की।