पैसे की खातिर मंचों पर ,कवि क्यों फिरता मारा मारा : हलधर

0
176

गीत – कवि क्यों फिरता मारा मारा
————————
पैसे की खातिर मंचों पर , कवि क्यों फिरता मारा मारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।

तू शहर शहर में घूम रहा ,फिर भी तेरा मन खाली है ।
ये भूख लगी जो पैसे की , दुर्बल मन की कंगाली है ।
बाहर से दिखता उजियारा , अंतस काले धन से हारा ,
सुर साज सभी रह जाएंगे , टूटेगा तन का इकतारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।1

साहित्य सदन की महफ़िल में ,तू घूम रहा बनकर छैला ।
दर्पण में जब चेहरा देखा ,प्रति बिम्ब दिखा उसमें मैला ।
भाड़े का टट्टू बना हुआ ,क्यों तोता रट्टू बना हुआ ,
धन साथ नहीं जा पाएगा , फूंकेगा तन को अंगारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यार ।।2

बगिया यह रोक न पायेगी , तू बना रहा जिसका माली ।
सब धरती पर रह जाएगा ,जब आएगी लेने काली ।
क्यों लगा रहा झूँठी धुन में ,गुण खोज रहा है औगुन में,
मरुथल में मृग सा घूम रहा ,क्यों थका थका हारा हारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।3

कविता जिन्दा रह जाएगी ,रह जाएंगे कुछ गीत खड़े ।
बस चित्र टंगा रह जाएगा , रोते रह जाएं मीत खड़े ।
कितना खोया कितना पाया , “हलधर”रखना ये सरमाया ,
जिस दिन घर से अर्थी निकले, संसार बिलख रोए सारा ।
सब नोट धरे रह जाएंगे ,जिस दिन फूटेगा घट प्यारा ।।4
हलधर -9897346173