देहरादून: चमोली आपदा को लेकर जांच में जुटी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को आपदा के उद्गम स्थल तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं का कहना है कि जरूरत पड़ने पर वैज्ञानिकों को हेलीकॉप्टर भी मुहैया कराया जाएगा, जिससे आपदा के कारणों का पता लगाया जा सके।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं ने बताया कि फिलहाल संस्थान के पांच वैज्ञानिकों की दो टीमें आपदा से जुड़े तमाम वैज्ञानिक पहलुओं पर अध्ययन कर रही हैं।
कहा कि जहां से आपदा की शुरुआत हुई, वहां का रास्ता बड़ा दुर्गम है। ऐसे में वैज्ञानिकों को आपदा के उद्गम स्थल तक जाने की जरूरत पड़ी तो हेलीकॉप्टर मुहैया कराया जाएगा।
ताकि वैज्ञानिकों की टीमें उस इलाके का हवाई सर्वेक्षण कर आपदा से जुड़े तमाम पहलुओं का अध्ययन कर सकें।
निदेशक का कहना है कि आपदा की असली वजह क्या है, इस संबंध में फिलहाल अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। संस्थान के वैज्ञानिकों की टीमें तमाम पहलुओं का अध्ययन कर रही हैं। उनके द्वारा रिपोर्ट सौंपी जाने के बाद ही अंतिम नतीजे पर पहुंचा जा सकता है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचांद साईं का मानना है कि जिस तरीके से साल 2013 में केदारनाथ आपदा से भारी तबाही हुई और अब चमोली आपदा से भारी नुकसान हुआ है। ऐसे में हिमालयी क्षेत्रों में झीलों और ग्लेशियरों के विस्तृत अध्ययन की जरूरत है।
डॉ. साईं का यह भी मानना है कि झीलों और ग्लेशियरों का अध्ययन करने के लिए उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्यों में अधिक से अधिक ऑलवेदर स्टेशन, मॉनीटरिंग स्टेशनों स्थापित करने की जरूरत है। ताकि, इनसे मिले डाटा के आधार पर न सिर्फ आपदाओं का पूर्व आकलन किया जा सके, वरन आपदा के बाद होने वाले नुकसान और दुष्प्रभावों को भी कम किया जा सके।
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