Home Blog

तेज रफ्तार ट्रैक्टर ट्राली और मिनी बस में भीषण टक्कर,12 घायल

0

रुड़की 01 जून । रविवार तड़के भगवानपुर थाना क्षेत्र में पुहाना के पास हाईवे पर एक तेज रफ्तार ट्रैक्टर ट्राली और एक मिनी बस की आपस में भीषण टक्कर हो गई। जिस कारण मिनी बस में सवार महिलाओं सहित करीब 12 यात्री घायल हो गए हैं। सभी घायलों को उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली निवासी करीब 15 यात्री मिनी बस में सवार होकर घूमने के लिए मसूरी जा रहे थे। सुबह करीब चार बचकर तीस मिनट पर पुहाना के पास पहुंचने पर एक तेज रफ्तार ट्रैक्टर ट्रॉली की मिनी बस से टक्कर हो गई। टक्कर इतनी भीषण थी कि मिनी बस बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई है।
इस हादसे में मिनी बस में सवार महिलाओं सहित करीब 12 यात्री घायल हो गए है। सूचना मिलते ही दो 108 एम्बुलेंस मौके पर पहुंची। जिसके बाद सभी घायलों को उपचार के लिए सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां पर सभी घायलों का उपचार किया जा रहा है। पुलिस के द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है। घायलों में शिल्पा-30 वर्ष, गिन्नी चौधरी- 24 वर्ष, करमचंद – 55 वर्ष, वाशु- 10 वर्ष, वरशित -13 वर्ष समेत 12 लोगों के नाम शामिल है।

पर्यटकों के लिए खुले प्राकृतिक स्वर्ग फूलों की घाटी के द्वार

0

चमोली। चमोली जनपद में स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान को रविवार की सुबह पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। पहले दिन प्राकृतिक स्वर्ग का दीदार करने कुल 49 पर्यटक पहंुचे। हर साल जून से अक्टूबर तक खुलने वाली यह घाटी अपने रंग-बिरंगे फूलों और शांत वातावरण के कारण देश-विदेश के सैलानियों के लिए खास आकर्षण का केंद्र रहती है। घाटी के मुख्य द्वार पर वन विभाग की टीम ने पर्यटकों का पारंपरिक तरीके से गर्मजोशी से स्वागत किया। इस अवसर पर विभाग ने पर्यटकों को घाटी की जैव विविधता, नियमों और सुरक्षा से जुड़ी जानकारी भी दी। विभाग की मानें तो अब तक जून महीने में कुल 62 सैलानियों ने पंजीकरण करवा लिया है, जो आने वाले दिनों में संख्या बढ़ने का संकेत है। फूलों की घाटी में 300 से अधिक प्रकार की देसी और विदेशी फूलों की प्रजातियां पाई जाती है। इनमें ब्रह्मकमल, ब्लू पोपी, प्रिमुला, कोबरा लिली और कई दुर्लभ प्रजातियां शामिल है। यह घाटी वर्ष 2005 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध की गई थी और इसे संरक्षित जैव विविधता के लिए वैश्विक मान्यता प्राप्त है। प्रकृति प्रेमियों, ट्रैकिंग के शौकीनों और फोटोग्राफरों के लिए यह घाटी एक स्वर्ग समान है. वन विभाग ने पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए प्रतिदिन सीमित संख्या में पर्यटकों को प्रवेश की अनुमति देने की व्यवस्था की है। इस वर्ष भी उम्मीद की जा रही है कि हजारों पर्यटक इस अद्वितीय घाटी में पहुंचकर प्रकृति की गोद में कुछ पल बिताएंगे और इसे एक अविस्मरणीय अनुभव के रूप में संजो कर ले जाएंगे।

कब्र खोदने के विवाद ने पकड़ा तूल,सीएम धामी ने विधायक को दिया जांच का आश्वासन

0
Lavc60.20.101

नैनीताल 01 जून। रामनगर के गौजानी क्षेत्र में कब्रिस्तान में कब्र खोदने को लेकर शुरू हुआ विवाद अब राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर भी गंभीरता से लिया जा रहा है। मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब एक युवक कब्र में लेटकर सोशल मीडिया पर लाइव आने लगा। इस पूरे मामले को लेकर रविवार को रामनगर विधायक दीवान सिंह बिष्ट ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री ने जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
विधायक दीवान सिंह बिष्ट ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीर और संवेदनशील बताया। उन्होंने प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाये। उन्होंने कहा कि घटना के दिन वहां मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका की भी जांच कराई जाएगी। इसके लिए उन्होंने जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से वार्ता कर कार्रवाई की मांग की है। विधायक दीवान सिंह बिष्ट कहा कि मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें पूरे प्रकरण से अवगत करवाया गया है। उन्होंने इस पर गंभीर रुख अपनाते हुए जांच के आदेश दिए हैं। विधायक दीवान सिंह बिष्ट ने कहा कि कुछ अराजक तत्वों ने जानबूझकर इस मामले को तूल देने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि ऐसे तत्वों को चिन्हित कर उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। दीवान सिंह बिष्ट ने रामनगर के अन्य लंबित विकास कार्यों का भी ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि मोहल्ला पंपापुरी और भरतपुरी क्षेत्र के विनियमितिकरण सहित अन्य समस्याओं को भी मुख्यमंत्री के समक्ष उठाया है। जिस पर मुख्यमंत्री ने शीघ्र समाधान का भरोसा दिलाया है।

दोस्तो संग नहाने गए युवक की नदी में डूबने से मौत

0

हल्द्वानी 01जून । दोस्तों के साथ ज्योलीकोट स्थित नदी में नहाने गए एक युवक पानी में डूबकर मौत हो गयी। सूचना पाकर एसडीआरएफ ने रात सर्च ऑपरेशन के बाद शव बरामद किया है। मृतक युवक हल्द्वानी का रहने वाला है। पुलिस ने शव कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।
पुलिस के मुताबिक बीती देर रात्रि को पुलिस स्टेशन ज्योलीकोट के माध्यम से एसडीआरएफ टीम को सूचना मिली कि ज्योलीकोट में एक युवक नदी में डूब गया है। सूचना मिलते ही नैनीताल एसडीआरएफ टीम उप निरीक्षक मनोज रावत के नेतृत्व में रेस्क्यू उपकरणों के साथ टीम तत्काल घटनास्थल के लिए रवाना हुई। घटना हल्द्वानी नैनीताल स्थल रोड ज्योलीकोट से लगभग दो से तीन किलोमीटर नीचे स्थित एक तालाब में हुई थी, जहां युवक डूब गया था। एसडीआरएफ टीम ने विषम परिस्थितियों के बावजूद मौके पर पहुंचकर सर्च ऑपरेशन प्रारंभ किया। टीम द्वारा कड़ी मशक्कत के बाद सर्चिंग के दौरान तालाब से युवक जीवन रावत पुत्र तेज सिंह रावत, उम्र 21 वर्ष निवासी बच्चीनगर हल्द्वानी का शव बरामद किया। बताया जा रहा है कि युवक दोस्तों के साथ मौज मस्ती करने गया था, जहां नहाने के दौरान हादसा हुआ। पुलिस शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

मानसिक दिव्यांग भाईयों के यौन शोषण का आरोपी शिक्षक गिरफ्तार

0

देहरादून 01 जून। कोतवाली पटेल नगर क्षेत्र के अंतर्गत बंजारावाला में स्थित विशेष बच्चों(मानसिक दिव्यांग) के एक बोर्डिंग स्कूल में दो सगे भाइयों के साथ यौन शोषण के आरोप में एक शिक्षक को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।
दिव्यांग बच्चों की मां की शिकायत के आधार आरोपी शिक्षक के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था।
मुरादाबाद निवासी महिला ने शिकायत दर्ज कराई है कि उनके दो बेटे जिसमें एक की उम्र 13 साल और दूसरे की उम्र 9 साल है, दोनों मानसिक दिव्यांग हैं। महिला ने अप्रैल में गूगल के माध्यम से देहरादून की पटेल नगर क्षेत्र में विशेष बच्चों के लिए नया बोर्डिंग स्कूल खोलने की जानकारी मिली थी। इस पर महिला मई के पहले सप्ताह देहरादून पहुंची. स्कूल देखने के बाद प्रबंधन से बात की थी।
स्कूल प्रबंधन की ओर से दावा किया गया था कि बच्चों के रहन-सहन और पठन-पाठन की प्रतिदिन की फोटो और वीडियो भेजी जाएगी। ऐसे में महिला ने अपने दोनों बच्चों का दाखिला स्कूल में कर दिया। एक बच्चे की फीस प्रतिमाह 20 हजार रुपए बताई। बच्चों का दाखिला कराने के बाद स्कूल प्रबंधन की ओर से बच्चों की दो-चार ही वीडियो और फोटो भेजी गई। इसके बाद उनसे संपर्क करना बंद कर दिया। 16 मई में महिला दोबारा देहरादून आई। जब वह स्कूल पहुंची तो बच्चों से उसे मिलने नहीं दिया गया। जिसके बद वह वापस चली गई।
महिला शुक्रवार को दोबारा देहरादून पहुंची। जिसके बाद वह बच्चों से मिलने की जिद पर अड़ गई। उसके बाद स्कूल प्रबंधन ने उन्हें बच्चों से मिलने की मंजूरी दी। जब महिला ने अपने बच्चों से अकेले में बात की तो दोनों रोने लगे। बच्चों ने बताया कि एक शिक्षक लोहे की रोड से उनकी पिटाई करता है। पेट में लात मारता है। बच्चों ने बताया कि शिक्षक ने कई बार दोनों को सिगरेट से दागा और यौन शोषण किया। बच्चों की बात सुनकर महिला के होश उड़ गये। उसने विरोध जताया लेकिन स्कूल प्रबंधन से कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। जिस पर महिला ने पुलिस को शिकायत दी।
कोतवाली पटेल नगर प्रभारी चंद्रभान सिंह अधिकारी ने बताया कि महिला की तहरीर के आधार पर आरोपी शिक्षक के खिलाफ खिलाफ पॉक्सो अधिनियम सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोपी को शनिवार देर शाम को गिरफ्तार लिया गया है। अब आगे की कार्यवाही अमल में लाई जा रही है।

बेरोजगार नर्सिंग महासंघ के सम्मेलन मे स्वास्थ्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत से भर्ती प्रक्रिया को शीघ्र प्रारंभ करने की लगाई गुहार

0

देहरादून 1 जून। उत्तरांचल प्रेस क्लब में उत्तराखंड के सभी जिलों से जुटे बेरोजगार नर्सिंग कर्मियों ने नर्सिंग महासंघ की एक महत्त्वपूर्ण बैठक में भाग लिया। बैठक का मुख्य उद्देश्य राज्य में लंबित पड़ी नर्सिंग अधिकारियों की भर्ती प्रक्रिया को शीघ्र प्रारंभ करवाने और चिकित्सा शिक्षा विभाग में रिक्त पदों को भरने हेतु सरकार से अनुरोध करना रहा।
बैठक में शामिल प्रतिनिधियों ने बताया कि राज्य के माननीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत द्वारा पूर्व में 1000 नर्सिंग अधिकारियों की वर्षवार भर्ती की घोषणा की जा चुकी है। साथ ही हरिद्वार और पिथौरागढ़ मेडिकल कॉलेजों हेतु 480 पदों पर नियुक्ति के लिए शासनादेश भी निर्गत हो चुका है। इसके बावजूद भर्ती प्रक्रिया की गति धीमी है, जिससे हजारों योग्य और प्रशिक्षित बेरोजगार नर्सिंग अभ्यर्थी परेशान हैं।

महासंघ ने सरकार से निम्नलिखित प्रमुख मांगें रखीं:
1. नर्सिंग अधिकारियों की वर्षवार भर्ती प्रक्रिया को तत्काल प्रारंभ किया जाए।
2. भर्ती प्रक्रिया में केवल राज्य के मूल निवासी अभ्यर्थियों को ही शामिल किया जाए।
3. चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत 1455 स्वीकृत पदों के सापेक्ष छूटे हुए अभ्यर्थियों की वेटिंग सूची जारी की जाए।
प्रतिनिधियों ने यह भी बताया कि वर्ष 2012-13 तक के अधिकांश वरिष्ठ अभ्यर्थी चयनित हो चुके हैं, जबकि 2018-19 बैच तक के कई अभ्यर्थियों को बैकलॉग के माध्यम से नियुक्ति मिल गई है। लेकिन मध्यवर्ती वर्षों — विशेषकर सामान्य वर्ग — के अभ्यर्थी अब भी चयन से वंचित हैं और कई की अधिकतम आयु सीमा समाप्त होने की कगार पर है।
इसके अतिरिक्त, महासंघ ने स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत हाल ही में उच्चीकृत उप जिला चिकित्सा केंद्रों में नए पद सृजित कर उन पर शीघ्र नियुक्ति हेतु शासनादेश जारी करने की भी मांग की।
अंत में नर्सिंग महासंघ ने सरकार से मानवीय और न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाते हुए जल्द से जल्द आवश्यक कार्यवाही करने की मांग की। महासंघ का कहना है कि इस कदम से न केवल बेरोजगार नर्सिंग कर्मियों को रोजगार मिलेगा, बल्कि प्रदेश की आम जनता को भी बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी।
इस अवसर पर नर्सिंग महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष नवल पुंडीर,प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र कुकरेती,प्रदेश मीडिया प्रभारी प्रवेश रावत,अंकुर कुमार, प्रदेश महामंत्री अजीत भंडारी,कोषाध्यक्ष मधु उनियाल, सुभाष रावत, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य स्तुति सती सहित कई अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे।

नेशनल पीएच.डी. स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद कन्फर्म हो रिसर्च डिग्री :डॉ.सुशील उपाध्याय

0

देहरादून 01 जून। बीते एक साल में यूजीसी ने एक दर्जन से अधिक प्राइवेट विश्वविद्यालयों पर पीएच.डी. डिग्री ऑफर करने पर रोक लगाई है। अब यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि कई प्राइवेट विश्वविद्यालयों में चार से छह लाख में डिग्री बेची जा रही हैं। किसी भी विषय या डोमेन की डिग्री एक-डेढ़ लाख में लिखवाकर दी जा रही है। देश में करीब साढ़े चार सौ प्राइवेट विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से ज्यादातर पीएच.डी. डिग्री में प्रवेश दे रहे हैं। मेघालय की सीएमजे यूनिवर्सिटी से लेकर उत्तर प्रदेश की मोनाड यूनिवर्सिटी तक के मामलों को जोड़ तो देश की पांच फीसद से ज्यादा प्राइवेट यूनिवर्सिटी पीएच.डी. डिग्री की खरीद-फरोख्त में शामिल हैं। पीएच.डी. के फर्जीवाड़े का मामला देश की संसद में भी उठ चुका है।
भारत में प्राइवेट विश्वविद्यालयों में फर्जी पीएच.डी.डिग्रियों और शैक्षणिक अनियमितताओं का मुद्दा शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। अभी तक यूजीसी और राज्य सरकारों ने इस रैकेट के खात्मे के लिए गंभीर और ठोस प्रयास नहीं किए हैं, जबकि इसे जड़ से खत्म करने के लिए समन्वित तकनीकी और कठोर कानूनी उपाय अपनाने की आवश्यकता है। दो काम तत्काल किए जाने की जरूरत है। पहला, यूजीसी द्वारा यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि पीएच.डी. में पंजीकृत होने वाले हरेक शोधार्थी का डेटा शोधगंगा पोर्टल पर अधिकतम तीस दिन के भीतर अपलोड किया जाए। जिनके एडमिशन और सिनॉप्सिस की स्वीकृति का डेटा इस पोर्टल पर होगा, उन्हीं की थीसिस मूल्यांकन के लिए स्वीकार की जाएगी। इस कार्य में कोई अतिरिक्त संसाधन खर्च नहीं होने हैं, यह पूरी तरह यूजीसी की इच्छा शक्ति पर निर्भर है। इसके लागू होते ही पीएच.डी. में बैक डेट में एडमिशन का धंधा खत्म हो जाएगा।
दूसरा काम नीतिगत तौर पर कठिन है, लेकिन किया जा सकता है। इससे यूजीसी की स्वयं की साख बढ़ेगी। यूजीसी को पीएच.डी. डिग्री धारकों की योग्यता और क्षमता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की एक स्क्रीनिंग या लाइसेंसिंग परीक्षा की व्यवस्था पर विचार करना चाहिए जैसा कि मेडिकल क्षेत्र में नेशनल एग्जिट टेस्ट या बार काउंसिल ऑफ इंडिया के ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन के रूप में देखा जाता है। मेडिकल और लॉ ग्रेजुएट्स को अपने प्रोफेशनल फील्ड में आने के लिए संबंधित स्क्रीनिंग परीक्षाओं को पास करना होता है। चूंकि, पीएच.डी. उपाधि विशेष प्रयोजन के लिए हासिल की जाती है इसलिए संबंधित लोगों से यह अपेक्षा करना गलत नहीं होगा कि उनके ज्ञान का स्तर इस लायक है कि वे अपने नाम के सामने डॉक्टर लगा सकें या उस डिग्री के आधार पर उच्च पद प्राप्त कर सकें।
1986 के यूजीसी रेगुलेशन से पहले डिग्री कॉलेजों में ऐसे लोगों को लेक्चरर या सहायक प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त किया जा सकता था जिन्होंने स्नातक और स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी के साथ प्राप्त की हो, बाद में जब गुणवत्ता का प्रश्न आया तो यूजीसी ने राष्ट्रीय स्तर की नेट परीक्षा को न्यूनतम योग्यता में शामिल किया। (हालांकि यह न्यूनतम योग्यता भी बार-बार संशोधित की जाती रही है।) इसी तरह अब पीएच.डी. उपाधि प्राप्त करने जा रहे युवाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा लागू की जानी चाहिए। केवल उन्हीं की पीएच.डी. कन्फर्म की जाए जो इस परीक्षा को पास करें।
इस परीक्षा की अनिवार्यता लागू होते ही पीएच.डी. की खरीद-बिक्री का धंधा लगभग नियंत्रित हो जाएगा क्योंकि पीएच.डी. डिग्री खरीदने के बाद यदि इस परीक्षा को पास न कर पाए तो डिग्री का महत्व लगभग शून्य हो जाएगा। यूजीसी और राज्य सरकारों को साथ-साथ यह भी करना होगा कि सभी प्रकार की अकादमिक एवं रिसर्च संबंधी नियुक्तियों और प्रमोशन आदि में केवल वे ही पीएच.डी. उपाधि मान्य हों, जिनके साथ राष्ट्रीय स्तर की पात्रता परीक्षा पास कर ली गई हो।
यह परीक्षा पीएच.डी. डिग्री धारकों की शोध क्षमता, विषय ज्ञान एवं शैक्षिक गुणवत्ता की जांच करेगी और सुनिश्चित करेगी कि केवल योग्य व्यक्ति ही पीएच.डी. उपाधि का उपयोग अकादमिक या पेशेवर क्षेत्रों में कर सकें। इसमें विषय के विशिष्ट प्रश्न, शोध पद्धति, डेटा विश्लेषण, शोध नैतिकता और संबंधित व्यक्ति के रिसर्च टॉपिक से संबंधित प्रश्न शामिल किए जा सकते हैं। इसके साथ-साथ यूजीसी को शोध मूल्यांकनकर्ताओं का नेशनल डेटा बैंक बनाना चाहिए और अनिवार्य करना चाहिए कि परीक्षकों के नाम इसी डेटा बैंक से लिए जाएं ताकि कतिपय मूल्यांकनकर्ताओं के स्तर पर होने वाले फर्जीवाड़े को रोका जा सके। इस डेटा बैंक में देशभर के सभी विषयों के एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर और 70 वर्ष से कम उम्र के रिटायर्ड प्रोफेसरों को शामिल किया जाना चाहिए। (इस संख्या को बढ़ाने के लिए पांच वर्ष का अनुभव रखने वाले सहायक प्रोफेसरों को भी शामिल किया जा सकता है।) इस डेटा बैंक में से जो परीक्षक बनाए जाएंगे, उन्हीं द्वारा शोधार्थी के शोध पत्रों को मान्यता प्राप्त जर्नल्स में प्रकाशन के आधार पर सत्यापित किया जा सकेगा।
यूजीसी द्वारा परीक्षक या एक्सपर्ट डेटा बैंक को और विस्तार देते हुए इसे रिसर्च गाइड डेटा बैंक के रूप में भी प्रयोग में लाया जा सकता है। यानी जो शिक्षक पीएच.डी. उपाधि हेतु गाइड बनने के पात्र हैं, उन सभी की डिटेल एक ही स्थान पर होनी चाहिए। इस डेटा बैंक को प्रत्येक वर्ष या छमाही आधार पर अपडेट किया जा सकता है। विश्वविद्यालयों के लिए यह अनिवार्य हो कि उनके यहां नियुक्त या कार्यरत सभी पात्र शिक्षकों का संपूर्ण विवरण इस पोर्टल पर उपलब्ध हो। इससे शोधार्थियों को यह जानने का अवसर मिलेगा कि वे जिस व्यक्ति के निर्देशन में शोध कार्य कर रहे हैं अथवा करने जा रहे हैं, संबंधित फील्ड में उनकी योग्यता क्या है।
पीएच.डी. के बाद की स्क्रीनिंग या लाइसेंसिंग परीक्षा भी यूजीसी नेट के समान साल में दो बार आयोजित की जा सकेगी। इस परीक्षा का आयोजन इसलिए कोई बड़ा टास्क नहीं होगा क्योंकि देशभर में सभी विषयों को मिलाकर प्रतिवर्ष 29-30 हजार युवा पीएच.डी. उपाधि प्राप्त करते हैं। पीएच.डी. धारकों के लिए इस परीक्षा की अनिवार्यता के लिए कट ऑफ डेट हेतु यूजीसी के नवीनतम शोध उपाधि रेगुलेशन-2022 को आधार तिथि बनाया जा सकता है। इसके बाद पंजीकृत हुए सभी शोधार्थियों के लिए यह परीक्षा अनिवार्य हो, जिन्होंने यूजीसी या सीएसआईआर नेट पास किया है, उन्हें इस परीक्षा से छूट देने पर विचार किया जा सकता है। इस परीक्षा में सफल होने वाले उम्मीदवारों को एक नेशनल पीएच.डी. लाइसेंस या क्वालिफिकेशन सर्टिफिकेट प्रदान किया जाए जो डिग्री की वैधता और योग्यता को प्रमाणित करेगा। यह प्रणाली निश्चित रूप से फर्जी डिग्रियों के उपयोग को रोकेगी क्योंकि बिना उचित शोध क्षमता के सामान्यतः उम्मीदवार इस परीक्षा को पास नहीं कर सकेगा। साथ ही यह शैक्षिक गुणवत्ता को भी मानकीकृत करेगी। जो पहले से पीएच.डी. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं, उनके मामले में इसे वैकल्पिक रखा जा सकता है।

नेशनल डिजिटल रजिस्ट्री की जरूरत
फर्जी डिग्रियों की छपाई और वितरण को रोकने के लिए एक केंद्रीकृत डिजिटल सत्यापन प्रणाली लागू किए जाने की भी जरूरत है। इस क्रम में यूजीसी और सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रालय एक ब्लॉकचेन आधारित डिजिटल रजिस्ट्री स्थापित करें जिसमें सभी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों द्वारा जारी पीएच.डी. डिग्रियों का डेटा संग्रहीत हो। प्रत्येक डिग्री को एक अलग डिजिटल कोड प्रदान किया जाए, जिसे नियोक्ता, शैक्षणिक संस्थान या अन्य हितधारक उसे सत्यापित कर सकें। इसके साथ एक ऑनलाइन सत्यापन पोर्टल भी बनाया जाए, जहां कोई भी व्यक्ति डिग्री की वैधता की जांच कर सके। यूजीसी के मौजूदा रिसर्च रिजर्वायर शोधगंगा को भी इस कार्य के लिए अपडेट किया जा सकता है। पीएच.डी. डिग्रियों के लिए वास्तविक समय निगरानी व्यवस्था लागू की जाए। विश्वविद्यालयों के लिए प्रत्येक पीएच.डी. डिग्री जारी करने पर तुरंत रजिस्ट्री में अपडेट करना अनिवार्य हो। इसमें रिसर्च वर्क की संपूर्ण डिटेल शामिल हो। अभी शोधगंगा पर जिस प्रकार थीसिस अपलोड की जा रही हैं, उनसे वास्तविक उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है।
ऐसा नहीं है कि सभी प्राइवेट विश्वविद्यालयों में पीएच.डी. खरीदी-बेची जा रही हैं, लेकिन जब पांच फीसद से ज्यादा यूनिवर्सिटी गड़बड़ी कर रही हैं तो अन्य संस्थाएं भी संदेह की निगाह से देखी जाने लगती हैं। ऐसे में सभी विश्वविद्यालयों की सख्त निगरानी और ऑडिट की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए यूजीसी अथवा राज्य सरकारों द्वारा गठित एक स्वतंत्र ऑडिट समिति प्रत्येक वर्ष विश्वविद्यालयों का रिसर्च ऑडिट करे। (नैक या एनआईआरएफ की मौजूदा प्रक्रिया से यह कार्य नहीं हो सकेगा।) इसमें शोध उपाधि प्रवेश प्रक्रिया, थीसिस मूल्यांकन, गाइड की योग्यता और डिग्री प्रदान करने की प्रक्रिया की जांच की जाए और उसकी रिपोर्ट संबंधित विश्वविद्यालय की वेबसाइट, यूजीसी की वेबसाइट और राज्य के उच्च शिक्षा मंत्रालय या निदेशालय की वेबसाइट पर भी जारी की जाए ताकि प्रवेश लेने वालों को पता रहे कि संबंधित विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है या नहीं।
कुछ प्राइवेट विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के पहले सत्र में ही पीएच.डी. उपाधि आरंभ कर देते हैं जो नियमों के विपरीत है। जब तक किसी नए विश्वविद्यालय को यूजीसी से 2एफ की मान्यता प्राप्त न हो जाए और कम से कम दो या तीन बैच स्नातकोत्तर उपाधि पास न हो जाएं तब तक शोध उपाधि आरंभ करना नियमों के खिलाफ है। यूजीसी को 2एफ की मान्यता देने से पहले प्राइवेट विश्वविद्यालयों का बुनियादी ढांचा, फैकल्टी की उपलब्धता और शोध सुविधाओं की गहन जांच करनी चाहिए और ऐसी जांच हरेक पांच साल में दोहराई जानी चाहिए। कई विश्वविद्यालयों में रेगुलर शिक्षक नहीं हैं और वे भी धड़ाधड़ पीएच.डी. करा रहे हैं। इस पर रोक का एक ही तरीका है कि प्राइवेट विश्वविद्यालय जिन शिक्षकों को गाइड के रूप में दिखा रहे हैं, उनके और संबंधित विश्वविद्यालय के बीच न्यूनतम पांच साल का नियुक्ति अनुबंध हो। इससे फर्जी गाइड पर भी रोक लगेगी और शोधार्थी भी परेशानी में नहीं फंसेंगे। सभी प्राइवेट विश्वविद्यालयों में पीएच.डी. सीटों की संख्या उनकी शोध सुविधाओं और गाइड की उपलब्धता के आधार पर निर्धारित की जाए ताकि अंधाधुंध दाखिले रोके जा सकें। वर्तमान में सैद्धांतिक रूप से तो यह व्यवस्था लागू है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर इसका पालन नहीं किया जाता।

त्वरित कार्रवाई और कानूनी ढांचा
फर्जी डिग्री के मामले में त्वरित और कठोर कानूनी कार्रवाई के बारे में भी सोचना पड़ेगा क्योंकि फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्त हुआ व्यक्ति नई पीढ़ी को कई दशक तक गुमराह करेगा इसलिए उसका अपराध गंभीर श्रेणी में रखा जाए। इस क्रम में फर्जी डिग्री मामलों के लिए विशेष कोर्ट स्थापित किए जाएं जो निर्धारित अवधि के भीतर मामलों का निपटारा करें। इसमें विश्वविद्यालय प्रशासन, एजेंटों और डिग्री धारकों को शामिल किया जाए। साथ ही, यूजीसी को भी जिम्मेदार माना जाए। ऐसे मामलों में भारी जुर्माना अधिरोपित किया जाए और विश्वविद्यालयों की मान्यता तुरंत रद्द की जाए। इन विश्वविद्यालयों और फर्जीवाड़े में शामिल व्यक्तियों का एक सार्वजनिक डेटाबेस बनाया जाए ताकि भविष्य में उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। प्रत्येक राज्य में एक विशेष जांच इकाई स्थापित की जाए जो फर्जी डिग्री रैकेट की जांच में यूजीसी और राज्य सरकारों के साथ सहयोग करे।
फर्जी पीएच.डी. के मामले में अभी तक यूजीसी का रुख बहुत उम्मीद जगाने वाला नहीं है। यूजीसी की ज्यादातर कार्रवाई औपचारिकता भर ही हैं। यदि यूजीसी गंभीर हो तो उसे यह अनिवार्य करना चाहिए कि सभी प्रकार की पीएच.डी. में यूजीसी-जेआरएफ, यूजीसी-नेट, यूजीसी-नेट फॉर पीएच.डी. अथवा इसके समकक्ष सीएसआईआर-नेट के आधार पर ही प्रवेश होंगे। उपरोक्त सभी श्रेणियों में हर साल एक लाख से ज्यादा युवा सफलता प्राप्त करते हैं, जबकि पीएच.डी. में प्रवेश पाने वालों की संख्या इनके एक तिहाई ही है। यूजीसी के मौजूदा नियम और प्रावधान किसी न किसी स्तर पर प्राइवेट विश्वविद्यालयों के लिए पिछले दरवाजे की संभावनाएं छोड़कर रखते हैं।

इंटरनेशनल बेंचमार्किंग
भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिसर्च और डिग्री सत्यापन के लिए बेंचमार्क स्थापित करने चाहिए। इसके लिए यूएसए, यूके, जर्मनी, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की डिग्री सत्यापन और शोध मूल्यांकन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाए। अंतरराष्ट्रीय डेटाबेस के साथ एकीकरण करते हुए भारत की नेशनल डिग्री रजिस्ट्री को वैश्विक डेटाबेस के साथ जोड़ा जाए। यह भारत की रिसर्च डिग्रियों की वैश्विक विश्वसनीयता को बढ़ाएगा और विदेश में भी फर्जी डिग्रियों का उपयोग रोकेगा। इस कार्य को स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स अथवा मेडिकल) जैसे महत्तचपूर्ण विषयों में तुरंत किया जाना चाहिए।
वस्तुतः पीएच.डी. डिग्री की खरीद-बिक्री को रोकने के लिए यूजीसी और राज्य सरकारों को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। राष्ट्रीय स्तर की पीएच.डी. स्क्रीनिंग लाइसेंसिंग परीक्षा, डिजिटल सत्यापन प्रणाली, सख्त निगरानी, कठोर कानूनी कार्रवाई और भावी शोधार्थियों के बीच जागरूकता, इस समस्या के समाधान के लिए महत्वपूर्ण हैं। ब्लॉकचेन आधारित रजिस्ट्री और रिसर्च गाइड एवं परीक्षकों का डेटा बैंक तथा टेक्नोलॉजी आधारित उपाय इस समस्या को जड़ से खत्म करने में मदद करेंगे। इनमें से कोई भी उपाय ऐसा नहीं है जो भारत में अन्य क्षेत्रों में पहले से लागू न किया गया हो अथवा जिसकी कॉस्ट इतनी अधिक हो कि उसे यूजीसी या राज्य सरकारें वहन न कर सकें। इस वक्त यदि कठोर निर्णय नहीं लिए गए तो अगले कुछ साल के भीतर उच्च शिक्षा और शोध क्षेत्र में गंभीर परिणाम सामने आएंगे। पीएच.डी. डिग्री फर्जीवाड़े पर नियंत्रण हेतु सक्षम तंत्र विकसित न करने पर भारत की शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता और गुणवत्ता और संदेह से घिरेगी, जिससे योग्य शोधार्थियों और अकादमिक पेशेवरों के सामने भी संकट पैदा होगा।

पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर के 300 वे जन्म दिन पर कस्बा बनत में उनकी प्रतिमा पर किया गया माल्यार्पण

0

शामली 31 मई। बनत मंडल के कस्बा बनत मे पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर जी के 300 वे जन्म दिन को कस्बा बनत में स्थित उनके स्मृति स्थल पर लगी उनकी मूर्ति को माल्यार्पण एवम् फूल अर्पित करके नगर पालिका पंचायत बनत के तत्वाधान में मनाया गया ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के मुख्य अतिथि नगर पालिका अध्यक्ष अरविंद संगल ने संबोधित करते हुए कहा माता अहिल्याबाई होल्कर ने 80 से अधिक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जिनमें काशी विश्वनाथ का मंदिर भी शामिल है केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक अपने राज्य की सीमा से बाहर जाकर उन्होंने मंदिरों के जीर्णोद्धार कराए । मध्य प्रदेश के मालवा प्रदेश की महारानी अहिल्याबाई होल्कर जी के जीवन से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि किस प्रकार एक साधारण परिवार में जन्म लेने के बाद राज्य की बागडोर संभाल कर उन्होंने नारी उत्थान, समाज उत्थान में अपना सहयोग दिया ।
भगवान शिव की अन्नय भक्त
पुण्यश्लोक राजमाता अहिल्याबाई होल्कर जी राजमाता के त्याग, तप, न्यायप्रियता और जनकल्याण के अद्वितीय आदर्शों के प्रतीक राजमाता अहिल्याबाई होल्कर केवल एक शासक नहीं थीं, बल्कि वे एक महान धर्मप्रेमी, दानवीर एवं जनता की सच्ची संरक्षक थीं, जिनका सम्पूर्ण जीवन सेवा और समर्पण की अनुपम मिशाल है।
महारानी अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा परमाल्यार्पण करते हुए मुख्य अतिथि श्री अरविंद संगल जी नगर पालिका अध्यक्ष शामली के पश्चात मंडल अध्यक्ष श्री गजेंद्र सिंह जी श्रीमती कुसुम जी नगर पचायत अध्यक्ष बनत चेयरमेन प्रतिनिधि धरमवीर महामंत्री बदन सिंह ई. ओ. देवकीनंदन अन्य सभासद एवं अन्य देवतुल्य कार्यकर्ता बधु ने भी माल्यार्पण किया।

तीक्ष्ण सोच और स्वत: स्फूर्त शासक थी अहिल्याबाई: तावड़े

0

महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर कार्यक्रम आयोजित

देहरादून 31 मई ।

शनिवार मुख्य सेवक सदन, देहरादून में पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होल्कर की जन्म त्रिशताब्दी वर्ष स्मृति अभियान के अंतर्गत आयोजित संगोष्ठी में मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी राष्ट्रीय महामंत्री श्री विनोद तावड़े प्रदेश अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद श्री महेंद्र भट्ट एवं प्रदेश महामंत्री (संगठन) श्री अजेय कुमार ने प्रतिभाग किया।

भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े ने महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर देहरादून के मुख्य सेवक सदन में आयोजित कार्यक्रम में पुण्यश्लोक महारानी अहिल्याबाई के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महारानी अहिल्याबाई प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थी। अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थी। उनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था। फिर भी उन्होंने जो कुछ किया, उससे आश्चर्य होता है। उनका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गाँव में हुआ। उस समय महिलाये स्कूल नहीं जाती थीं, लेकिन अहिल्याबाई के पिता ने उन्हें लिखने -पढ़ने के लिए प्रेरित कर पढ़ाया।
श्री विनोद तावड़े ने अपने संबोधन में कहा कि अहिल्याबाई के पति खांडेराव होलकर 1754 के कुम्भेर युद्ध में शहीद हुए थे। 12 साल बाद उनके ससुर मल्हार राव होलकर की भी मृत्यु हो गयी। इसके एक साल बाद ही उन्हें मालवा साम्राज्य की महारानी का ताज पहनाया गया। वह हमेशा से ही अपने साम्राज्य को मुस्लिम आक्रमणकारियो से बचाने की कोशिश करती रहीं, बल्कि युद्ध के दौरान वह खुद अपनी सेना में शामिल होकर युद्ध करती थीं। रानी अहिल्याबाई ने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में काफी मंदिरों का निर्माण भी किया था।
उन्होंने लोगों के रहने के लिए बहुत सी धर्मशालाएं भी बनवाईं। ये सभी धर्मशालाएं उन्होंने मुख्य तीर्थस्थान जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास ही बनवाई। मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़े हुए मंदिरों को देखकर ही उन्होंने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाया। जो आज भी हिन्दुओं द्वारा पूजा जाता है।
श्री विनोद तावड़े ने कहा कि यह आयोजन भारत की विरासत की स्मृति का उत्सव मनाने तथा भारत की सांस्कृतिक एवं सामाजिक नींव को आकार देने वाले महान दूरदर्शी लोगों को याद करने और उन्हें सम्मानित करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रयासों का एक हिस्सा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संबोधन में कहा कि एक बुद्धिमान, तीक्ष्ण सोच और स्वस्फूर्त शासक के तौर पर अहिल्याबाई को याद किया जाता है। हर दिन वह अपनी प्रजा से बात करती थी। उनकी समस्याएं सुनती थी। उनके कालखंड (1767-1795) में रानी अहिल्याबाई ने ऐसे कई काम किए कि लोग आज भी उनका नाम लेते हैं। अपने साम्राज्य को उन्होंने समृद्ध बनाया। उन्होंने सरकारी पैसा बेहद बुद्धिमानी से कई किले, विश्राम गृह, कुएं और सड़कें बनवाने पर खर्च किया। वह लोगों के साथ त्योहार मनाती और हिंदू मंदिरों को दान देतीं। अहिल्याबाई का मानना था कि धन, प्रजा व ईश्वर की दी हुई वह धरोहर स्वरूप निधि है, जिसकी वह मालिक नहीं बल्कि उसके प्रजाहित में उपयोग की जिम्मेदार संरक्षक हैं। उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में अहिल्याबाई ने प्रजा को दत्तक लेने का व स्वाभिमान पूर्वक जीने का अधिकार दिया। प्रजा के सुख दुख की जानकारी वे स्वयं प्रत्यक्ष रूप प्रजा से मिलकर लेतीं तथा न्याय-पूर्वक निर्णय देती थी। उनके राज्य में जाति भेद को कोई मान्यता नहीं थी व सारी प्रजा समान रूप से आदर की हकदार थीं।
मुख्यमंत्री ने कहा की उत्तराखंड में हमारी सरकार जनता के हितों को केंद्र में रखते हुए सभी कार्यों को कर रही है इसमें प्रमुख रूप से विद्यार्थियों के लिए नकल विरोधी कानून बनाना, उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए भू कानून बनाना, समान नागरिक सहिंता जैसे कानून बनाना, लैंड जिहाद और धर्मांतरण जैसे कानून बनाना, इसके साथ-साथ महिला सशक्तिकरण के लिए सहायता समूह में उनको सशक्त करने की दिशा में आगे बढ़ना, सरकारी नौकरियों में महिलाओं को क्षैतिज आरक्षण देना यह सब राज्य और यहां की जनता के हित में लिए गए वह निर्णय है जो आज अन्य प्रदेशों में भी सार्थक चर्चा के विषय बने हुए हैं।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने अपने संबोधन में कहा कि महारानी अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नक्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनाये , मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की। उनका उत्तराखंड से भी बड़ा गहरा रिश्ता है उन्होंने अपने शासनकाल में केदारनाथ बद्रीनाथ और उत्तराखंड के तमाम विभाग में धर्मशालाएं बनाने का काम किया और गोचर जैसी नैसर्गिक सुंदर स्थल को गोचर नाम भी उन्होंने ही दिया। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। उन्होंने कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर बनवाये हैं। उन्होंने काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवाईं। साथ ही इंदौर को एक छोटे-से गांव से खूबसूरत शहर बनाया। मालवा में कई किले और सड़कें बनवाईं।
श्री महेंद्र भट्ट ने कहा कि पुण्यश्लोक अहिल्याबाई भारत के लोकतंत्र, संस्कृति और नारी शक्ति की प्रतीक थीं। महिलाओं के सशक्तिकरण, कुशल प्रशासन, धर्म और न्याय की स्थापना तथा विरासतों के संरक्षण के लिए उन्होंने महती कार्य किए। मराठा साम्राज्य के मालवा प्रांत की शासिका के रूप में, उन्होंने एक ऐसे शासन की नींव रखी, जो न्याय, समृद्धि और धर्म से परिपूर्ण था।
भाजपा महामंत्री (संगठन) अजेय कुमार जी ने अपने संबोधन में कहा कि अगर हम दुनिया के प्रमुख और प्राचीन देशों के इतिहास पर नजर डालेंगे तो हमें दिखेगा कि ऐसी बहुत कम महिलाएं हैं, जिनका उस देश के इतिहास और जनमानस पर प्रभाव रहा हो, लेकिन यह बात भारत के बारे में कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि भारत में ऐसी कई महिलाएं थीं जिन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर के अपनी अमिट छाप समाज पर छोड़ी है। ऐसी महिलाओं में से एक है महेश्वर (आज के मध्यप्रदेश) की महारानी पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर, जिन्हें इतिहास की किताबों में नजरअंदाज किया गया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हमने उनको अब तक वह स्थान नहीं दिया है जिनकी वे हकदार हैं। उस वक्त महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था, लेकिन मल्हारराव एक दूरदर्शी सेनानी थे, उन्होंने और उनकी पत्नी गौतमाबाई ने अहिल्याबाई पर ऐसा कोई भी बंधन नहीं लगाते हुए उनको पढ़ाया, लिखाया और एक योद्धा के रूप में उनको दुनिया के सामने लाए। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपने पति खंडेराव का युद्धों में साथ दिया। लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर को उनकी जन-केंद्रित नीतियों, आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता, विशेष रूप से महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों के लिए याद किया जाता है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्थानीय समुदाय के सामाजिक और धार्मिक जीवन में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित किया।
श्री अजेय जी ने कहा कि लोक कल्याण के लिए समर्पित लोकमाता का जीवन और विचार सभी के लिए चिर प्रेरणा का स्रोत हैं।
इस अवसर पर प्रदेश उपाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक श्री शैलेन्द्र सिंह बिष्ट गढ़वाली जी, महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती दीप्ति रावत भारद्वाज सहित समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले समाजसेवी , दायित्वधारी सहित भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारीगण एवं बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

दून को जल्द मिलेगी तीन नई ओटोमेटेड पार्किंग

0

परेडग्राउंड, तिब्बती मार्केट, कोरोनेशन में आटोमेटेड पार्किंग निर्माण कार्य अंतिम चरण में

देहरादून 31 मई । देहरादून शहर में निर्माणाधीन स्मार्ट ऑटोमेटेड पार्किंग का कार्य अंतिम चरण में है। मुख्यमंत्री के निर्देश व जिलाधिकारी सविन बंसल के सतत प्रयासों से जनपद देहरादून आधुनिक सुविधायुक्त आटोमेटेड पार्किंग निर्माण कार्य युद्धस्तर पर अग्रसर है। इसी श्रृखला में शहर में शुरूआती चरण में तीन आटोमेटेड पार्किग कार्य अपने अंतिम चरण हैं। यह आधुनिक सुविधा जल्द ही आमजन को उपलब्ध होने जा रही है। इस अत्याधुनिक पार्किंग से तिब्बती मार्केट के सामने, परेड ग्राउंड, तथा कोरोनेशन अस्पताल परिसर में पार्किंग की समस्या काफी हद तक कम होगी साथ ही जनमानस को सुरक्षित व सुविधाजनक वाहन पार्किग की मिलेगी।
जिलाधिकारी की अभिनव पहल से एक ओर जहाँ कोरोनेशन अस्पताल परिसर में स्वास्थ्य सेवाओं के साथ अब भौतिक ढांचे को भी स्मार्ट बनाया जा रहा है, जिससे शहर की चिकित्सा व्यवस्था और अधिक सुव्यवस्थित हो सकेगी। वहीं शहर के बढ़ती ट्रैफिक के दृष्टिगत शहर में व्यवस्थित रूप से पार्किंग सुविधा उपलब्ध कराने में डीएम की आइडिया मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। आधुनिकता की दौड़ में ऑटोमेटेड पार्किंग मैदानी क्षेत्रों के वाहनों की पार्किंग के लिए बढ़ावा दे रही हैं। डीएम के आईडिया की उपज ऑटोमेटेड पार्किंग, आगामी भविष्य में शहर के अन्य स्थानों पर देखने को मिलेगा। यह पार्किंग बहुत की कम स्थान पर निर्मित हो जाती है तथा इसे अनयंत्र स्थल पर भी शिफ्ट किये जाने की सुविधा रहती है।

MOST POPULAR

HOT NEWS