दिल्लीशिक्षासंस्कृति

माँ-पिता के चरणों में हीं सच्चा स्वर्ग

पल पल इस घटते जीवन को यूं आबाद किया हमनें
जब जब मन को विचलित पाया तुमको याद किया हमनें

ढूंढ रही सदियों से दुनिया काम तुम्हारे चरणों में
भटके मन को मिलता है आराम तुम्हारे चरणों में
इनकी पग धूली में मिल जाता मरहम हर पीड़ा का
तुम तीरथ हो अपने चारों धाम तुम्हारे चरणों में
वाणी का संयम खोकर जब कोई विवाद किया हमनें
जब जब मन को विचलित …

जब महलों को तज कोई वन का वासी हो जाता है
मन के घाट किनारे सब काशी काशी हो जाता है
जब भावों के भीतर से दुनिया खाली हो जाती है
तब तन मन का कौना कौना सन्यासी हो जाता है
मन भीतर सोचा तुमको तुमसे संवाद किया हमने
जब जब मन को विचलित …

इस दुनिया के अनुभव कितने मीठे तीखे होते हैं
वो जी जाते हैं अच्छे से जो सब सीखे होते हैं
और बुरी दुनिया देखी तो हमनें ये महसूस किया
अच्छे लोग यहां दुनिया में आप सरीखे होते हैं
आंखों में बंदी आंसूं को जब आज़ाद किया हमनें
जब जब मन को विचलित …
संकल्प जैन …✍🏻

रिपोर्ट  :-  सिद्धार्थ भारद्वाज प्रभारी उत्तर प्रदेश/दिल्ली। 

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