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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी समारोह: विजयदशमी पर शस्त्र पूजा और संगठन की ऊर्जा के साथ शुभारंभ

देहरादून 28सितम्बर

। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष समारोह का शुभारंभ विजयदशमी और नवरात्रों के पावन अवसर पर नगर के दोनों महानगरों में भव्य रूप से हुआ। महानगर दक्षिण में 23 स्थानों और उत्तर में 18 स्थानों पर पूर्ण गणेश कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें स्वयंसेवकों ने योग, व्यायाम और अनुशासन का अनुकरणीय प्रदर्शन किया। समाज के सभी वर्गों—माताओं-बहनों, युवाओं और नागरिकों की उल्लेखनीय भागीदारी ने कार्यक्रमों को जन-उत्सव का रूप प्रदान किया।
वक्ताओं ने विजयदशमी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह पर्व केवल भगवान श्रीराम द्वारा रावण के पराभव का स्मरण मात्र नहीं, बल्कि सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक है।
परम पूजनीय अध्याय सरसंघचालक डॉक्टर हेडगेवार जी कि उसे दूर दृष्टि को रेखांकित कर वक्ताओं ने कहा कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन लड़ते हुए या अनुभव किया की सामान्य हिंदू समाज अपना आत्म स्वाभिमान अपने पूर्वजों की साहस शौर्य और महानता की परंपरा से दूर होकर जातियों में भाषाओं में क्षेत्र में उच्च नीच के भाव में भटकर बहुत कमजोर हो रहा है इसलिए इस राष्ट्र को अगर नई ऊंचाइयां और हिंदुत्व की संगठन शक्ति के साथ खड़ा नहीं किया गया तो पुणे आक्रमणों के द्वारा भारत को कमजोर करने की शक्तियां सक्रिय हो जाएगी हिंदुत्व का सूर्य बुझाने के प्रयास किए जाएंगे इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की की गई जो 100 वर्षों की अखंड यात्रा में एक यश और कीर्ति की महान उदाहरण गाथा बन गया है। विजय दशमी दिन शस्त्र पूजन और शक्ति पूजन की परंपरा हमें यह संदेश देती है कि संगठित समाज ही अधर्म, अन्याय और अराजकता फैलाने वालीक्तियों पर विजय प्राप्त कर सकता है। नवरात्रों में मां दुर्गा द्वारा महिषासुर जैसे अहंकारी असुरों के संहार की कथा और शक्ति की उपासना हमें यह विश्वास दिलाती है कि संगठन और आत्मशक्ति से किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना किया जा सकता है।
कार्यक्रमों में वक्ताओं ने संघ की स्थापना, हिंदू समाज की संगठन शक्ति, सेवा भावना, राष्ट्रप्रेम, अनुशासन, स्वदेशी, पर्यावरण संरक्षण, कुटुंब प्रबोधन और सामाजिक समरसता पर विशेष बल दिया। साथ ही उन्होंने समाज को धर्मांतरण और विघटनकारी षड्यंत्रों से सतर्क रहने का आह्वान करते हुए कहा कि उपेक्षित और गरीब वर्गों की सेवा ही सच्चे राष्ट्रधर्म का पालन है।
उत्तराखंड के पराक्रमी सपूत जसवंत सिंह रावत के चीन युद्ध में बलिदान का स्मरण करते हुए कहा गया कि उनका शौर्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता है। साथ ही, आज बलिदानी क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह की जयंती का उल्लेख कर प्रेरक उदाहरण दिए । वक्ताओं ने कहा कि ये महापुरुष त्याग, बलिदान और राष्ट्रभक्ति के अमर आदर्श हैं, जिनके पथ पर चलकर ही भारत माता विश्व में आदर्श राष्ट्र और शांति का प्रतीक बन सकती हैं।
शताब्दी वर्ष के इस आरंभिक आयोजन में स्वयंसेवकों का जोश और समाज की व्यापक भागीदारी ने स्पष्ट संदेश दिया कि हिंदू समाज अपनी परंपरा, संस्कृति और संगठन शक्ति के बल पर भारत को सशक्त और विश्वगुरु बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
संघ द्वारा स्वयं प्रेरणा से देश पर आए विपदा युद्ध काल में सैनिक सेनन की सहायता और आपदा पर अपने राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा के लिए तत्परता से बाढ़ की स्थिति में चाहे धारली हो धारली हो ऊंचा है अहमदाबाद की विमान दुर्घटना हो पंजाब की बाढ़ हो हर जगह स्वयंसेवक प्रताप से सेवा कार्यों में लग जाता है यह साहस उसे संघ की शाखा और उसका संस्कार देता है जय मा भारती ।
इन कार्यक्रमों में मुख्य वक्ता के रूप में श्रीमान संजय जी प्रांत प्रचार प्रमुख,श्रीमान धनंजय जी विभाग प्रचारक,राजेंद्र पंत जी,अरुण जी,गजेंद्र जी देवराज जी सतेंदर जी तथा आदि कार्यकर्ता बन्दु रहे ।
कार्यक्रमों में लगभग ४५०० स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में शामलित हुए ।

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