जलवायु परिवर्तन संकट का सबसे बड़ा बोझ झेल रहे हैं बच्चे: सुमंता कर

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देहरादून 22 अप्रैल । जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान, अनियमित मौसम, और बाढ़, चक्रवात तथा सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति दुनियाभर में करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रही है, लेकिन इस मानव निर्मित संकट का सबसे बड़ा प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है, जो समाज का सबसे संवेदनशील वर्ग हैं। भारत में, जहां 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या 30% से अधिक है, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और भविष्य की संभावनाओं पर विनाशकारी हैं। यह बात एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज इंडिया के सीईओ सुमंता कर ने पृथ्वी दिवस 2025 के अवसर पर कही।
जलवायु परिवर्तन और बच्चों की संवेदनशीलता के बीच संबंध पर प्रकाश डालते हुए सुमंता कर ने कहा, “हाशिए पर रह रहे बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अत्यधिक होता है। पहले से ही गरीबी, कुपोषण और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से जूझ रहे इन बच्चों के लिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ उनके जीवन को और भी असुरक्षित बना देती हैं। हाल के वर्षों में असम और बिहार में बाढ़, तटीय क्षेत्रों में चक्रवात और महाराष्ट्र व राजस्थान में सूखे ने हजारों बच्चों को बेघर कर दिया है, जिससे वे शिक्षा से वंचित हो गए हैं और भूख व बीमारियों के खतरे में आ गए हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “जलवायु आपदाएं जब लाखों लोगों को विस्थापित करती हैं, तो बच्चे अपने घर, समुदाय और कभी-कभी अपने परिवार तक खो बैठते हैं। इस विस्थापन से उनकी शिक्षा बाधित होती है, शोषण का खतरा बढ़ता है और वे खतरनाक श्रम या मानव तस्करी जैसे जोखिमों में फंस सकते हैं। जिन बच्चों ने पहले ही पारिवारिक देखभाल खो दी है, उनके लिए यह प्रभाव और भी गंभीर होता है। स्थिर घर और देखभाल देने वाले का अभाव उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जिससे दीर्घकालिक भावनात्मक और संज्ञानात्मक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।”
सुमंता कर ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ने का एक सशक्त माध्यम है, लेकिन जलवायु परिवर्तन बच्चों की शिक्षा को गंभीर रूप से बाधित कर रहा है। जलवायु आपदाओं के दौरान स्कूल अक्सर नष्ट हो जाते हैं या उन्हें राहत शिविरों में बदल दिया जाता है, जिससे लंबे समय तक पढ़ाई में रुकावट आती है। प्रवास के लिए मजबूर हुए बच्चों को नए स्कूलों में दाखिला लेने में कठिनाई होती है और आर्थिक कठिनाइयों के कारण कई बच्चे स्थायी रूप से पढ़ाई छोड़ देते हैं।
उन्होंने कहा, “दुनिया को यह मानना होगा कि जलवायु परिवर्तन के बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव को तुरंत और गंभीरता से संबोधित करना आवश्यक है। सरकारों, कॉर्पोरेट्स और नागरिक समाज को मिलकर बच्चों को केंद्र में रखकर जलवायु नीतियाँ बनानी होंगी। आपदा प्रबंधन को मजबूत करना, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाना और प्रत्येक बच्चे के लिए सुरक्षित, पोषणयुक्त वातावरण सुनिश्चित करना केवल नैतिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह हमारे सामूहिक भविष्य में एक निवेश है।”
आपदा प्रबंधन में निवेश बच्चों को जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। बाल-अनुकूल आपातकालीन स्थान और सामुदायिक आपदा प्रतिक्रिया योजनाएं मृत्यु दर और दीर्घकालिक मानसिक आघात को कम कर सकती हैं। स्कूलों और बाल देखभाल संस्थानों को आपदा के दौरान निकासी योजनाओं और सुरक्षा अभ्यासों से सुसज्जित किया जाना चाहिए, ताकि बच्चे आपात स्थिति में सही प्रतिक्रिया देना सीख सकें। इसके साथ ही, देखभालकर्ताओं और स्थानीय समुदायों को आपदा लचीलापन (disaster resilience) का प्रशिक्षण देकर बच्चों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है, सुमंता कर ने कहा।