ग़ज़ल (हिंदी)
साहित्य का हमने जिसे माना था नगीना ।
उर्दू जिसे हीरा कहे हिंदी भी ज़रीना ।।
फिरकापरस्ती रोग से पीड़ित या नसीला ,
वो हिंदुओं के खून को कहता है पसीना ।
वो तालिबानी सोच की करता है वक़ालत ,
वो सोचता है देश में काबिज हो मदीना ।
हालात मेरे मुल्क के नाशाद किया है ,
वो जून को कहने लगा है सर्द महीना ।
जिस देश का खाता रहा लेता है लिफाफे ,
उस देश के मिष्ठान को माने न सबीना ।
ये मानसिक बीमार है या रोग बुढापा ,
कहने लगा है दूब को भी घास पुदीना ।
सम्मान पूरे मुल्क ने भरपूर दिया था ,
खुद ही डुबो दी हाथ से साहित्य सफ़ीना ।
“हलधर” समूचे देश में अलगाव पला है ,
मैसूर या बंगाल या भोपाल , बबीना ।
हलधर-9897346173