उत्तराखण्डधर्म-कर्म

श्री प्रेमसुख धाम में महामृत्युंजय मंत्र जाप में अनुपम मुनि श्री ने बताया कांवड़ यात्रा शुरू होने का प्रसंग।

देहरादून 27 जुलाई । संकटमोचक चमत्कारी अतिशय धारी श्री गुरु प्रेम सुख जी की समाधि स्थल प्रेमसुख धाम में प्रतिदिन जैन महामृत्युंजय का जाप करते हुए गुरुदेव श्री अनुपम मुनि जी महाराज ने शिवरात्रि का महत्त्व बताया उन्होंने कहा कि यह महाव्रत मन को पवित्र करने के लिए और विकारों की मुक्ति के लिए लिए होता है ।भारतवर्ष और भारतवर्ष से बाहर जो शिव भक्त हैं वह सभी शिवरात्रि के पावन प्रसंग पर शिवरात्रि का व्रत करके मन को पवित्र करते हैं, मनसा वाचा कर्मणा आत्मा को शुद्ध करते हैं, आत्मा की शुद्धि होने से जीव शिव स्वरूप हो सकता हैं, इसलिए शिवरात्रि आत्म कल्याण के लिए एक बड़ा पर्व है।
शिव इतने भोले और आसानी से प्रसन्न होने वाले है,एक कथा है की एक शिकारी प्रतिदिन शिकार करता था और हिंसक वृत्ति वाला था 1 दिन ऐसा हुआ उसको कोई किसी भी प्रकार का शिकार नहीं मिला , घर वापस खाली नहीं आना चाहता था तो उसने सोचा कि मैं कुछ ना कुछ लेकर के ही घर जाऊं ऐसा सोच कर सरोवर के किनारे एक पेड़ था पेड़ पर चढ़कर तीर कमान लेकर बैठ गया। सरोवर में पशु पशु पानी पीने के लिए आए इस बात के लिए इंतजार करता रहा और गुस्से में बेलगिरी के पत्ते तोड़ तोड़ कर के नीचे फेंकता रहा और वही पत्ते शिवलिंग पर डालते रहे इस बीच में एक नहीं तीन-तीन हिरण भी आए इन्होंने अपनी मजबूरी बता कर वापस गए और वापस आने के लिए कहा कि हम अपना काम करके आएंगे और आप फिर हमें खाना ऐसी घटना घटी सुबह हुई। ना चाहते हुए शिकारी रात भर व्रत में भी रहा और अंजाने में शिव जी को बेल पत्र अर्पित करता रहा उसके पानी पीने के पात्र से पानी टपक कर शिवजी का अभिषेक होता रहा,इस प्रकार अनजाने में उसने शिव रात्रि में भूखा रहकर शिव को बेल पत्र अर्पित कर दिए और जल भी चढ़ा दिया ,भोले भंडारी तो इसको शिकारी की तपस्या मान बैठे । इसके प्रभाव से उसका मन प्रवर्तित हो गया और हिंसा के विचार मन से निकल गए, सुबह तीनों हिरण अपने परिवार, बच्चों सहित आए और कहा कि आप हमें खा सकते हैं, उनके कहने पर भी शिकारी ने कहा कि मैं तुम्हारी सच्चाई पर तुम्हें जीवन दान देता हूं, और मेरे मन में मेरी आंखों में अब हिंसा का मन नहीं है, सदा सदा के लिए हिंसा का परित्याग करता हूं बुराइयों को त्याग करता हूं इस तरह से शिकारी ने अपने जीवन को परिवर्तित किया। अपने मन आत्मा प्राणों को शिकारी ने पवित्र किया। इसलिए प्राचीन समय से लेकर के अब तक शिवरात्रि को साल में दो बार विशेष रूप से मनाया जाता है और इस दिन भारतवर्ष में कावड़ भी गंगोत्री से गंगा जी से जल लेकर अपने अपने शहर गांव में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाया जाता है, लोग हजारों हजारों किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए व्रत उपवास करते हुए कठिन से कठिन तपस्या करते हुए गंगाजल लाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं, ऐसा करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और मन को पवित्र करते हैं भक्तों के सभी पापा धो देते हैं,सभी मानो कामना भोलेनाथ पूरी कर देते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार परशुराम जी ने अपनी मां की हत्या की थी उस पाप से मुक्ति के लिए नारद ऋषि ने परशु राम जी को गंगोत्री से जल लाकर शिवजी का अभिशिषेक करने को कहा था
तब सर्वप्रथम गंगोत्री से कांवड़ लाकर अपने पूरा नामक स्थान पर शिवलिंग पर गंगा जल से अभिषेक किया था,जिससे उन्हें हत्या के पापा से मुक्ति मिली थी। तब से लेकर के आज तक भारतवर्ष में कावड़ की परंपरा चल रही है ।शिव जी की भक्ति में परशुराम जी से लेकर के अब तक भारत में अरबों वर्ष से शिव जी को जलाभिषेक करते आ रहे है। भगवान शिव आशुतोष है सभी प्रकार के भक्तों की मनोकामना भावना पूर्ण करते हैं ऐसे समय में शिव के पंचाक्षर मंत्र का या महामृत्युंजय के जाप का हमें जाप करना चाहिए, और आनंद की प्राप्ति करनी चाहिए सभी भारत वासियों के लिए शिवरात्रि कल्याणकारी हो मंगलकरी हो अंत में गुरुदेव श्री राजेश मुनि जी महाराज ने सभी श्रोता जनों को अपना आशीर्वाद के रूप में मंगल पाठ सुनाया।

Related Articles

Back to top button