ट्रिब्युनल ने माना ऐसे आदेशों को निरस्त किया जाना ही श्रेयस्कर
काशीपुर 05जून । उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के सेवा सम्बन्धी मामलों का निर्णय करने वाले विशेष न्यायालय (ट्रिब्युनल) की नैनीताल पीठ ने एस.एस.पी. उधमसिंह नगर तथा आई.जी.कुमाऊं नैनीताल के पुलिस कांस्टेबल दिनेश कुमार के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही में दिये गये दण्ड आदेश को निरस्त कर दिया। ट्रिब्युनल की कैप्टन आलोक शेखर तिवारी की बेंच ने इस पुलिस कमÊ की याचिका पर एस.एस.पी तथा आई.जी. के आदेशों को अपास्त किया जाना श्रेयस्कर मानते हुये निरस्त कर दिया है।
वर्तमान में चंपावत जिले में तैनात पुलिस कांस्टेबल दिनेश कुमार की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट ने उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण की नैनीताल बेेंच में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि वर्ष 2021 में जब यह पुलिस कर्मी उधमसिंह नगर जिले में तैनात थे तो डा.प्रेम सिंह राणा,विधायक नानकमत्ता, उधमसिंह नगर के तथाकथित पत्र दिनांक 07/06/2021 की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें याची सहित विभिन्न पुलिस कर्मियों की सूची दी गयी थी। इस पर एस.एस.पी. उधमसिंह नगर द्वारा जन प्रतिनिधियों से स्थानांतरण के सम्बन्ध में सिफारिश कराकर कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन करने वाले कर्मियों के विरूद्ध जांच कर आख्या उपलब्ध कराने का पुलिस अधीक्षक, नगर रूद्रपुर को आदेशित किया। उन्होंने अपनी जांच आख्या दिनांक 25/08/2021 में बिना स्वतंत्र साक्ष्यों तथा याची के पक्ष को विचार मे लिये बिना किसी सम्बद्ध कारण को उल्लेखित किये, बिना किसी वैध आधार के याची सहित सभी कर्मियों को दोषी होने का निष्कर्ष दे दिया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने इस जांच आख्या को आधार बनाते हुये अपने आदेश की चरित्र पंजिका में परिनिन्दा प्रविष्टि अंकित करने के दण्ड का आदेश दे दिया। पुलिस कांस्टेबिल द्वारा इसकी अपील आई.जी. कुमाऊं परिक्षेत्र नैनीताल को की गयी लेकिन उन्होंने भी अपील पर निष्पक्ष रूप से विचार किये बगैर अपने 24/07/2023 के अपील आदेश से अपीलं को निरस्त कर दिया। इस पर पुलिस कांस्टेबिल द्वारा अपने अधिवक्ता नदीमउद्दीन के माध्यम से उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण की नैनीताल पीठ में दावा याचिका दायर की गयी।
याची की ओर से नदीमउद्दीन ने विभागीय जांच, दण्ड आदेशों व अपील आदेश को निराधार तथा प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर निरस्त होने योेग्य बताया। उन्होने न्यायालय का ध्यान इस ओर कराया कि आश्चर्य का विषय यह है कि विधायक के जिस तथाकथित स्थानांतरण अनुशंसा पत्र को आधार बनाकर याची के विरूद्ध दण्डादेश पारित किया गया है उस अनुशंसित स्थान पर याची तीन माह पूर्व से ही कार्यरत चला आ रहा था। इसलिये सिफारिश करवाने या किसी अनुशासनिक अवहेलना का प्रश्न ही नहीं है। उत्तराखण्ड सरकार व पुलिस विभाग की ओर से सहायक प्रस्तुतकर्ता अधिकारी को आदेशों को सही तथा कानून के अनुसार होना बताया।
अधिकरण के सदस्य कैप्टन आलोक शेखर तिवारी की पीठ ने अधिवक्ता नदीम के तर्कों से सहमत होते हुये वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उधमसिंह नगर तथा आई.जी कुमाऊं के अपील आदेश को अपास्त किया जाना ही श्रेयस्कर प्रतीत होना मानते हुये निरस्त कर दिया। इसके साथ ही आदेश दिया गया कि आदेश की प्रमाणित प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत किये जाने की तिथि से 30 दिवस के भीतर याची की चरित्र पंजिका व अन्य अभिलेखों में दर्ज दण्ड को विलुप्त करें तथा सभी सेवालाभ अवमुक्त करते हुये प्रदान किये जायें