मैं भी बसंत मनाऊँ..
ख़्वाबों को जमीं पे उतार कर ,
मैं भी बसंत मनाऊँ l
मन की बात हर कोई कह ले,
मैं भी गीत सुनाऊँ ll
कर्म कर भाग्य को जगाऊं,
मन चाहा फल पाऊँ l
रात के सपने दिन में देखूँ,
अबकी मैं बसंत मनाऊँ ll
रंग बिरंगे फूलों को न तोरूं,
वो अपना जीवन जिए l
भवरें परागों पे अधिकार कर,
फूलों के शहद वो भी पिए ll
रंग बिरंगे फुलें सदा पखं डुलाए,
सदा सुसोभित धारा रहे l
पानी बिन न जमीं खुद को सुखाए
सदा बसंत सा हरा भरा रहे ll