देहरादून 23 नवंबर। आज सरस्वतीविहार ग्राउण्ड में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण से पूर्व कलश यात्रा गढ़वाल की पहचान ढोल दमांऊ की थाप व शिर पर कलश लिए महिलाएं कतारबद्ध गोविन्द जय गोपाल जय घोष के साथ सरस्वतीविहार शिवकर्ता मन्दिर से चल कर कथा पाण्डाल पहुँची, वहाँ पर लडूगोपाल जी का अभिषेक विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा किया गया मन्दिर समिति के सभी पदाधिकारी भी साथ रहे वहीं कथावाचन करते हुए ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम व्यासपीठालंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई जी नें भगवान कृष्ण की छह प्रिय वस्तुओं में मुरली की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि बाँसुरी भगवान श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय है,क्योंकि बाँसुरी में तीन गुण है। पहला बाँसुरी मं गांठ नहीं है। जो संकेत देता है कि अपने अंदर किसी भी प्रकार की गांठ मत रखो यानी मन में बदले की भावना मत रखो।दूसरा बिना बजाये यह बजती नहीं है। मानो बता रही है कि जब तक ना कहा जाए तब तक मत बोलो। और तीसरा जब भी बजती है मधुर ही बजती है। जिसका अर्थ हुआ जब भी बोलो,मीठा ही बोलो। जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते हैं,तो उसे उठाकर अपने होंठों से लगा लेते हैं।ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से देखें तो बाँसुरी नकारात्मक ऊर्जा और कालसर्प के प्रभाव को दूर करता है।श्री कृष्ण की कुण्डली में भी कालसर्प योग था।इसलिए श्री कृष्ण का बाँसुरी से स्नेह है। इससे हमें सीख लेनी चाहिए। आज विशेष मन्दिर समिति के महासचिव गजेन्द्र भण्डारी कैलाश बड़ाकोटी ललिता प्रसाद बड़ाकोटी प्रेम बड़ाई उमेश बड़ाकोडी चन्द्र कान्त आचार्य दामोदर प्रसाद सेमवाल आचार्य ललिता प्रसाद आचार्य प्रभूदयाल आचार्य हितेश पन्त आचार्य हिमांशु मैठानी आचार्य सूरज पाठक आचार्य सुनील चमोली वसन्त देवी बड़ाकोटी श्रीमति संगिता सुमन यशोदा रूची साकेत मंयक प्रतिष्ठा पार्थ दिव्या नब्या भैरवदत्त कण्डवाल मूर्तिराम विजल्वाण गिरीश डियूंडी आशीष गुसाईं दिपक काला राजेश जोशी वेद प्रकाश भट्ट कुलानन्द पोखरियाल आचार्य सुशांत जोशी आदि भारी संख्या में श्रधालु उपस्थित थे।