बतौर घुमंतु अर्ध घुमंतु आकर बसे बावरिया समाज ने शिक्षित होकर अपराध को किया बाय बाय

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समाज के लोग मुख्य धारा में जुड़कर कर रहे हैं नौकरी और अपना व्यवसाय

1974 में डीएम रहे योगेंद्र नारायण माथुर को आज भी याद करते हैं समाज के लोग

झिंझाना 30 अगस्त। सैकड़ो वर्ष पहले गुजरात और राजस्थान मूल के घुमंतु ,अर्ध घुमंतु जनजाति के रूप में झिंझाना क्षेत्र में आकर बसने वाला बावरिया समाज अब अपराध से मुक्ति कर सामान्य जीवन जीने लगा है। खादर क्षेत्र की चार गांव पंचायत याहिया पुर,सींगरा,खानपुर और पटनी परतापुर,के कुल 12 मजरों में बसे इस जन जाति के लोग बावरिया समाज के रूप में जाने जाते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से महाराणा प्रताप और राजपूत समाज के वंशज बताए जाने वाले इन समुदाय के गोत्र डबास,सोलंकी,परमार,कोली,बढ़ियार और चौहान आदि होते थे। माना जाता है कि अकबर और जहांगीर के वक्त अपनी इज्जत और धर्म की सुरक्षा के लिए इन्होंने यहां शरण ली थी। बताया जाता है कि वर्ष 1847 में पहले खानपुर कला और अहमदगढ़ में आकर ये लोग बसे थे। बाद में क्षेत्र के गांव मस्तगढ़,खानपुर जाटान, डेरा भागीरथ,अलाउद्दीन पुर,नयाबास, खोकसा,खानपुर कलां,अहमदगढ़,खेड़ी जुनारदार,रामपुरा,दूधली और बिरालियान में इन्होंने अपना रैन बसेरा शुरू किया था। निर्धनता वश जंगली जीवन जीने के कारण इस समाज के लोगों ने चोरी,डकैती, शिकार करना, शराब निकलना और पीना जैसी आपराधिक प्रवृत्तियों को अपना कर अपना जीवन व्यापन शुरू किया था। कहते है कि बावरिया समाज के लोगों ने अपराध के वक्त महिलाओं की इज्जत के साथ कभी बलात्कार,छेड़छाड़ जैसा घिनौना अपराध नहीं किया। सनातन पूजा पाठ में भी हमेशा श्रद्धा और भाव इनमें दिखाई पड़ता रहा है। आजादी के बाद वर्ष 1951 में इस समाज को अनुसूचित जाति में शामिल किया गया। तब से समाज के लोग निरंतर उन्नति कर समाज की मुख्य धारा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं।

बावरिया समाज का इतिहास
कभी राजस्थान और गुजरात से आकर हरियाणा के कुरुक्षेत्र में बसने वाले बावरिया समाज के लोगों ने आजादी से पूर्व उत्तर प्रदेश के यमुना किनारे बिडौली क्षेत्र में तत्कालीन जमींदार और तत्कालीन ओनरेरी मजिस्ट्रेट हसन मेहंदी की सहमति पर रेन बसेरा कर शरण ली थी। बाद में क्षेत्र की चार गांव सभा क्रमशः याहियापुर,पटनी परतापुर, सींगरा,खानपुर गांव पंचायत के गांव मस्तगढ़,खानपुर जाटान,डेरा भागीरथ डेरा थान्नू,अलाउद्दीन पुर,नयाबास,खोकसा, खानपुर कलां,अहमदगढ़,खेड़ी जुनारदार, रामपुरा,दूधली और बिरालियान में इन्होंने अपना डेरा जमा लिया था। 1950 में जमीदारा खत्म हो गया था।

कैसे छूटा अपराध से नाता

निर्धनता और निरक्षरता वश जीने की जरूरतो को पूरा करने के लिए समाज ने दबे पांव चोरी चकारी करना शुरू किया। यहां रहकर अन्य प्रदेशों में भी इन्होंने चोरिया की। कहते है कि उक्त समाज ने चैलेंज देकर भी चोरी करके दिखा दिया था। मांस मदिरा के शौक ने शिकार करना और गुड़ या शीरे से शराब निकालना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। उक्त शराब को बेचकर पैसे कमाना इनका अवैध धंधा बन गया था। उनके इन अवैध धंधों की बदौलत पुलिस प्रशासन और अन्य दूसरे समाज के लोगों ने भी इनसे भरपूर दौलत कमाई। बाद में शिक्षा और सरकारी योजनाओं की बदौलत समाज में जागृति आई और समाज के लोगों ने अपराध छोड़ सामाजिक जीवन जीना सीख लिया। वर्तमान में इक्का दुक्का ही कोई अवैध धंधों में लिप्त है।

शिक्षित होकर कर रहे नौकरी या खुद का व्यवसाय
आजादी के बाद समाज में शिक्षा के बढ़ते प्रचलन और शासन स्तर पर मिलने वाली योजनाओं के बूते वंचित समाज दिनों दिन मुख्य धारा से जुड़ता चला गया। जिससे रहन-सहन खान-पीन और व्यवहार में परिवर्तन आ गया। अब समाज के सैकड़ो लोग पुलिस प्रशासन एवं अन्य विभाग में नौकरी कर अपराध मुक्त जिंदगी जी रहे हैं। और अपने अन्य समाज को भी प्रेरणा दे रहे हैं।

बावरिया समाज और राजपूत समाज से समानता ।
महाराणा प्रताप का वंशज कहलाने वाले बावरिया समाज को अनुसूचित जाति में शामिल किया गया है। इनमे डबास , सोलंकी,परमार,कोली,बढ़ियार और चौहान आदि गोत्र मिलते हैं। शादी के वक्त लड़की की डोली को चार व्यक्तियों के कंधों पर सवार कर विदा किया जाना आदि लक्षण इनके राजपूत समाज से मिलते-जुलते हैं।

कैसे सुधरा बावरिया समाज।

लगभग दशकों से बावरिया समाज का नेतृत्व करने वाले लेखपाल जीतराम अब कानूनगो से सेवानिवृत हो गए हैं। बताते हैं कि वर्ष 1974 में तत्कालीन जनपद मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम योगेंद्र नारायण माथुर ने समाज की जरूरत को समझा और उन्हें प्रभावित कर अपराध छोड़ सामान्य जीवन जीने की राह दिखाई थी। परिणाम स्वरुप उस वक्त सैकड़ो लोगों ने उनके आगमन पर आत्म समर्पण करते हुए अपराध से मुक्ति का संकल्प लिया था। सेवानिवृत्त माथुर अब भी समाज को दिशा देने में प्रयासरत है। भगवत सिंह कश्यप एडवोकेट के प्रयासों को भी लोग भूल नहीं सकते। उनकी छत्रछाया में समाज के लोग एकत्र होकर समाज उत्थान के लिए लगातार संघर्ष कर रहे है।

पूर्व जिलाधिकारी ने समाज को दिखाई
दिशा और कराया विकास ।
बावरिया समाज को अंग्रेजों ने क्रिमिनल घोषित कर रखा था। मैंने अपने कार्यकाल में समाज के बीच पहुंच कर लोगों को सुना और उनके लिए खेती करने को नलकूप लगवाएं बिजली व्यवस्था और उत्तर प्रदेश सरकार से जूनियर स्कूल एवं कुछ योग्य युवाओं को रोजगार के लिए मदद की थी। सैकड़ो लोगों ने अपराध को छोड़कर सामान्य जीवन जीने का संकल्प लिया था। उन्होंने फोन पर बताया कि मैं सेवानिवृत्त हो जाने पर अब भी हमेशा बावरिया समाज के उत्थान के लिए प्रयासरत हूं। सरकार और उनके बीच की कड़ी बना हूं। समाज सुधर रहा है। अब बहुत लोग नौकरी और अपने व्यवसाय,खेती-बाड़ी से जुड़े हैं।

फोटो परिचय
योगेंद्र नारायण माथुर
पर्व जिलाधिकारी एवं रक्षा मंत्रालय से सेवानिवृत

जीतराम
अध्यक्ष जन चेतना बावरिया समाज कल्याण समिति

पूर्व जिलाधिकारी एवं रक्षामंत्रालय से सेवानिवृत्त योगेंद्र नारायण माथुर बावरिया समाज के लोगों के बीच,दिसंबर 2023 में मुजफ्फरनगर में हुए एक कार्यक्रम के दौरान।
श्रोत: झिंझाना से पत्रकार प्रेम चन्द वर्मा