भट्ट ने की, सदन में उत्तराखंड के लिए आपदा मुआवजा में वृद्धि एवं मानकों में सुधार की मांग

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*राज्य के दूरस्त क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार का मुद्दा राज्यसभा में उठाया*

देहरादून 31 जुलाई। राज्यसभा सांसद एवं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री महेंद्र भट्ट ने सदन से उत्तराखंड एवं पर्वतीय के लिए आपदा मुआवजा राशि में वृद्धि करने की मांग की है। जिसमे उन्होंने विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए मानकों में संशोधन का अधिकार राज्यों को सौंपने का भी आग्रह किया । साथ ही राज्य के दूरस्त क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या का मुद्दा उठाया।
राज्यसभा में अपने संबोधन में उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक एवं आपदा की परिस्थितियों की और सदन के माध्यम से सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया ।जिसमें उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत आपदा प्रवाहित क्षेत्र के लिए मुवाबजे की धनराशि में वृद्धि की जाए । वहीं मानकों में भी भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संशोधन करने का अधिकार राज्य सरकारों को प्रदान करने का अनुरोध किया। उन्होंने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत बाढ़ भूस्खलन और भूकंप में हुई हानि पर आवश्यक प्रतिपूर्ति तथा भवन क्षति एवं कृषि भूमि के भूस्खलन तथा बाढ़ में क्षति होने पर मिलने वाले मुवाबजे में वृद्धि को आवश्यक बताया । साथ ही कहा, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण राज्य एवं जनपदों में गठित है परंतु केंद्रीय राष्ट्रीय प्रबंधन प्राधिकरण के मानकों के दिशा निर्देश में ही मुआवजा की राशि देने का राज्यों को अधिकार है।
इस दौरान उन्होंने उत्तराखंड का जिक्र करते हुए कहा, में जिस राज्य का प्रतिनिधित्व करता हूं,वहां पर दैवीय आपदा के बार-बार आने से लोगों को विस्थापित करना बड़ी चुनौती होता है । वही आपदा में क्षतिपूर्ति दर इतनी कम होती है कि प्रभावितों को न्यायोचित आर्थिक राशि नहीं मिल पाती है। वहीं पहाड़ों में मट्टी और पत्थर से बने पहाड़ी शैली के मकान होते हैं इन्हें पक्के मकान की श्रेणी में नहीं माना जाता है और ये परिवार मुआवजे से वंचित रह जाते हैं। वहीं कुछ मकान भूस्खलन क्षेत्र में पूरी तरह धराशाई नहीं होते परंतु उन मकानों पर रहना बहुत ही खतरे के दायरे में रहता है । लेकिन आपदा का मानक है कि जब तक मकान पूर्णतया धराशाई ना हो जाए उन्हें मुआवजा श्रेणी में नहीं लिया जाता है जिससे इन परिवारों को मिलने वाले मुवाबजे से वंचित रहना पड़ता है। पहाड़ों में छोटे जोत के खेत होते हैं, तथा बाढ़ एवम भूस्खलन से यह खेत पूर्णतया क्षतिग्रस्त हो जाते हैं परंतु आपदा मानक के अनुसार इन खेतों को मिलने वाला मुआवजा इतना कम होता है उन्हें अपने खेतों को फिर से खेती योग्य करना संभव ही नहीं है, और अच्छे खासे खेत भी बंजर हो जाते है। इसे इस लोक महत्व का विषय बताते हुए उन्होंने सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत आपदा प्रवाहित क्षेत्र के लिए मुवाबजे की धनराशि में वृद्धि की जाए तथा मानकों में भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संशोधन करने का अधिकार राज्य सरकारों को प्रदान किया जाए।
साथ ही भट्ट ने उत्तराखंड से संबंधित मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या को भी सदन में उठाया । सरकार का ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्होंने राज्य में भारतीय संचार निगम द्वारा दी जाने वाली मोबाइल एवं इंटरनेट सुविधाओं में अधिक सुधार करने की जरूरत बताया। पहाड़ी राज्य होने के कारण दूर दराज के गांव को आज के समाचार क्रांति से जोड़ने के उद्देश्य से राज्य के 6000 अतिरिक्त गांव को संचार सुविधा से जोड़ने का निश्चय किया था, परंतु मेरी जानकारी के अनुसार अभी तक 2000 के आसपास गांव को ही इस सुविधा से जोड़ा जा सका है। बीएसएनएल द्वारा 1206 नए टावर लगाने के लक्ष्य को भी अभी तक पूर्ण नहीं किया गया है और दूर दराज के क्षेत्रों में जो टावर लगे हैं उनके द्वारा भी मोबाइल कनेक्टिविटी सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है । आज जहां अन्य मोबाईल कंपनियां 5G नेटवर्किंग की सुविधा उपभोक्ताओं को दे रही है वहीं उत्तराखंड में भारतीय संचार निगम द्वारा 4G की सुविधा भी ठीक प्रकार से नहीं दी जा रही हैं। आज के संचार युग में शिक्षा,स्वास्थ्य एवं आवागमन भी दूरसंचार एवं इंटरनेट नेटवर्किंग पर सर्वाधिक निर्भर हो गया है। भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम संचालन के लिए बीएसएनएल कनेक्टिविटी पर निर्भर रहना पड़ता है, वहीं सीमा पर तैनात आइटीबीपी को भी आज इन्टरनेट एवम फोन की आवश्यकता रहती है। इस लोक महत्व का विषय बताते हुए उन्होंने सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए, राज्य के दूर-दराज गांव में बीएसएनएल मोबाइल सुविधा को दुरुस्त करने एवं उपभोक्ताओं को 4G कनेक्टिविटी का लाभ प्रदान करने की मांग की।