दबंगों की धमकियों से डरकर पीड़ित परिवार ने छोड़ा घर, पुलिस की कार्यशैली पर उठे सवाल
चौसाना। क्षेत्र के भड़ी कोरियान गाँव में दबंगों के अत्याचार और पुलिस की ढ़ीली कार्य शेली के कारण एक परिवार को अपना घर छोड़कर हरियाणा में शरण लेनी पड़ी। पीड़ितों का कहना है कि उन्होंने पुलिस को कई बार शिकायत दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा आरोपियों ने उन्हें झूठे केस में फंसाने की धमकी दी, जिससे डरकर पूरा परिवार गाँव छोड़ने को मजबूर हो गया।
पहले भी दी थी तहरीर, फिर भी नहीं हुई कार्रवाई
पीड़ित सनोज पुत्र हरिनिह ने बताया कि कुछ समय पहले उसने और उसके भाई राजेश ने गाँव के ही कूड़ा सिंह, प्रवीन और सरला के खिलाफ चौकी चौसाना में शिकायत दी थी। आरोप था कि ये लोग आए दिन गाली-गलौज कर धमकाते हैं और नशे में मारपीट करते हैं। लेकिन पुलिस ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जिससे आरोपियों के हौसले और बढ़ गए। 23 फरवरी को सरला पत्नी कूड़ा सिंह ने राजेश को गालियाँ दीं और धमकी दी कि वे उसे और उसके भाई सनोज को सबक सिखाएंगे। इसके बाद प्रवीन पुत्र कूड़ा सिंह और कूड़ा सिंह पुत्र सूरता सिंह लाठी-डंडों के साथ आ गए और हाथापाई करने लगे। शोर सुनकर गाँव के ही सुभाष पुत्र फूला, राजपाल पुत्र मामराज और धर्मा पुत्र इंदर ने बीच-बचाव किया।
“यह मकान बिकाऊ है” के पोस्टर चिपकाए, फिर भी नहीं मिली राहत
इस घटना के बाद भी जब पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया तो परेशान होकर पीड़ितों ने अपने घरों पर “यह मकान बिकाऊ है” के पोस्टर चिपका दिए। लेकिन प्रशासन ने इसे भी नजरअंदाज कर दिया।
डर के साए में जीने को मजबूर, आखिरकार छोड़ा गाँव
सनोज का कहना है कि जब वह चौकी से लौटकर आया, तो आरोपियों ने फिर से उसे धमकाया और झूठे केस में फंसाने की बात कही। इससे डरकर उसने अपने पुत्र शिवम, पुत्र कर्ण और पुत्री विरा सहित गाँव छोड़ दिया और हरियाणा में शरण ली। इससे पहले उसका भाई राजेश भी दबंगों के डर से गाँव छोड़ चुका था।
इस मामले को लेकर जब झिंझाना थाना प्रभारी जितेंद्र कुमार शर्मा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पीड़ित मुझसे आकर मिलें, हर संभव मदद की जाएगी। थाना प्रभारी ने पीड़ित का मोबाइल नंबर भी लिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पीड़ित परिवार गुरुवार सुबह ही अपने बच्चों सहित गाँव छोड़ चुका था। गाँव में इस घटना को लेकर चर्चाएँ तेज हो गई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अगर पुलिस समय पर कार्रवाई करती तो आज पीड़ितों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर न होना पड़ता। अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन पीड़ित परिवार की वापसी के लिए कोई ठोस कदम उठाएगा, या फिर यह परिवार हमेशा के लिए अपना घर छोड़ने को मजबूर रहेगा?
रिर्पोट : अभिमन्यु चौहान के साथ सिद्धार्थ भारद्वाज प्रभारी दिल्ली एनसीआर।