ग्रामीण किसान का दर्द

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चौसाना,शामली। किसान की खेती खुले आसमान के नीचे
किसान अपनी सारी पूंजी को खुले आसमान के नीचे ऊपर वाले के भरोसे छोड़ देता है। आज भारत की रौनक उसके शहर में ही दिखाई देती है। विदेशी सैलानी भी इसे ही देखकर भारत को एक उभरता हुआ ताकत बता रहे हैं। भारत के लोगों में शायद यह मानसिकता घर कर गई है कि उन्हें सब कुछ शहर के ही इर्द-गिर्द दिखता है। अगर कोई दबी जुबान में खुद को किसान कहता है तो उसको अनपढ़ गवार समझा जाता है और हीन दृष्टि से देखा जाता है। देश की व्यवस्था ने किसानों को जो ज़ख्म दिया है वह किसी भी शारीरिक जख्म से बड़ा है। किसान अगर कोई जमीन खरीदना है तो पटवारी के चक्कर लगाने पड़ते हैं जबकि उसने सब कुछ ठीक कराया होता है तो फाइल पर रिपोर्ट लगवाने के पटवारी पैसे मांगते हैं अगर फसल खराब हो जाती है तो उसके मुवावजे के लिए रिपोर्ट पटवारी लगाते हैं तब पटवारी परेशान करते हैं और अगर फसल ठीक-ठाक हो भी जाती है तो कई दिनों तक वह मंडी में धूल चाट रही होती है। मंडी में फसल के साथ-साथ परिवार के एक सदस्य की उपस्थिति दिन रात वहीं होती है। खाना-पीना सब घर से जाता है अगर मैं कहूं तो मेला लगा होता है जहां किसान खरीददार या आढतियो के अधीन होता है। ये अन्नदाता हैं मेरी गुस्ताखी माफ करना पर अमूमन एक छोटा और मध्यमवर्गीय किसान हाथ जोड़े ही खड़ा होता है।
बैंक से लेकर बिजली विभाग तक रिश्वत – बैंक से किसी को लोन लेना है तब दलालों के माध्यम से होता है ज्यादातर बैंकों में दलाल प्रथा चल रही है अगर कोई सीधे जाता भी है तो उसके चक्कर इतने लगवा देते हैं कि वो भी परेशान होकर दलाल को ही ढूंढता है। अनपढ़ वर्ग को बैंक कर्मी द्वारा ढंग से समझाया नहीं जाता तो वे लोग मजबूर होकर दलाल को पकड़ते हैं। जिस दलाल के माध्यम से वो काम कराते हैं उसको वे कमीशन देते है कमीशन दलाल और बैंक कर्मियों में बंटता है। जिससे गरीब की और गरीबमार होती है। इसी से मिलता-जुलता हाल बिजली विभाग का भी है।
आज का किसान अपने आने वाली पीढ़ी को खेती किसानी से दूर रखना चाह रहा है। फिर उसे चाहे जमीन को ही क्यों ना बेचना पड़ जाए लेकिन एजेंट को पैसे देकर अपने बेटे को विदेश भेजना इसका मकसद बन गया है। गांव में किसानों के कई घर है जहां विदेश जाने को लेकर अब ताला लगा हुआ है यह तादाद बढ़ रही है। मेरा यकीन मानिए कोई विदेश जाकर वापस अपने गांव खेती करने नहीं आएगा। जिन किसानों के पास ज्यादा जमीन है वो ही इस व्यवसाय को मुनाफे के रूप में देख रहे हैं अन्यथा सारे किसान कोई अन्य रोजगार के उपाय करने में ही बुद्धिमानी समझ रहे हैं। आज के हालात कैसे हो गए हैं कि पहले पंजाब में फिर हरियाणा में गांव के गांव खाली हो गए हैं घरों में ताले लगे हैं और जो खुले भी है उसमें कौन है सिर्फ बूढ़े मां बाप। इन्हीं को देखते हुए यह प्रथा अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी चल पड़ी है। ये जाने वाले लोग ज्यादातर किसान परिवार से ही है।
व्यवस्था को इस बारे में विशेष ध्यान देना चाहिए नहीं तो वो भूखे पेट की दुहाई भी न दे पायेगी क्योंकि उसने कभी ना ही किसान को प्रोत्साहित किया और ना ही सहारा दिया। कर्ज माफी की बजाय फसलों के रेट अच्छे होने चाहिए क्योंकि कर्ज माफी में आने वाले व्यक्ति हर बार ज्यादातर वही होते हैं जो एक बार लेकर बैंक तक नहीं जाता। जो बेचारे ब्याज पर उठा उठा कर कर्ज जमा करते हैं उनका क्या कसूर है? इन्हीं सब व्यवस्थाओं से लोग परेशान है। भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। हमारे विदेश मंत्री ने लोकसभा में कहा है कि 2017- 133049
2018- 134561
2019- 144017
2020- 85254
2021- 163370
2022- 225620तथा2011सेअब तक 1750000 लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी है।

(गढ़ी हसनपुर निवासी किसान सचिन चौधरी द्वारा लिखा नीजि लेख )

रिर्पोट : सिद्धार्थ भारद्वाज प्रभारी जनपद शामली।