बर्खास्त कार्मिकों को कांग्रेस का मिला पूर्ण समर्थन

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विधानसभा में नियमों एवं परंपराओं का हुआ है हनन: माहरा, 20वें दिन भी जारी रहा उपवास व धरना प्रदर्शन

देहरादून। विधानसभा से बर्खास्त कार्मिकों को कांग्रेस का पूर्ण रूप से समर्थन मिल रहा है, पहले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के बाद शनिवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने भी धरना स्थल पहुंचकर बर्खास्त कार्मिकों को कांग्रेस की ओर से पूर्ण समर्थन दिया। इस दौरान द्वाराहाट से कांग्रेस के विधायक मदन बिष्ट सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने बर्खास्त कार्मिकों के साथ धरना स्थल पर बैठकर समर्थन दिया।

विधानसभा के बाहर बर्खास्त कार्मिकों का 20वें दिन भी उपवास एवं धरना प्रदर्शन जारी रहा। धरना स्थल पर पहुंचे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि विधानसभा भर्ती प्रकरण में बर्खास्त कर्मचारी कहीं से भी दोषी नहीं है बल्कि दोषी वह लोग हैं जिन्होंने इस प्रकार की नियुक्ति प्रक्रिया बनाई। उन्होंने कहा कि यदि नियुक्ति देने वाला दोषी नहीं तो बर्खास्त कार्मिक भी दोषी नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सभी कार्मिकों के साथ एक जैसा व्यवहार हो या फिर बर्खास्त कार्मिकों को भी बहाल किया जाए एवं आगे के लिए नियम प्रक्रिया में सुधार लाया जाए। प्रदेश अध्यक्ष ने बर्खास्त कार्मिकों को आश्वस्त करते हुए कहा कि इस संबंध में मुख्यमंत्री से मुलाकात करेंगे, कोर्ट में भी सहयोग करेंगे एवं कार्मिकों की इस लड़ाई में कांग्रेस पूर्ण रूप से साथ देगी।

कांग्रेस ने कोटिया कमेटी को गलत ठहराया

करन माहरा ने कहा कि विधानसभा कानून एवं परंपरा से चलती है, विधानसभा की पीठ सम्मानित पीठ है उसके द्वारा किए गए किसी भी कार्य के जांच केवल हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ या फिर सभी दलों के विधायकों की कमेटी बनाकर ही की जा सकती है। विधानसभा अध्यक्ष ने एक बहुत ही गलत परंपरा की नींव रख दी है, जो संसदीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, होना तो यह चाहिए था कि विधानसभा के माननीय सदस्यों की जांच कमेटी बनती और वह जांच कमेटी अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को बुलाती कानून के जानकारों को बुलाती, कार्मिक मामलों के जानकारों को बुलाती। उन्होंने कहा कि कोटिया समिति में कानून के जानकारों को पहले ही शामिल क्यों नहीं किया गया, यह बात भी गले नहीं उतर रही है। कमेटी जिसने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संज्ञान तक नहीं लिया। क्या ये कमेटी न्यायालय से ऊपर है।