लगी होड सी है चुराने की पैसा !

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ग़ज़ल

मछेरे वही हैं वही जाल भाई !
वही मछलियाँ हैं वही ताल भाई !

वही जाम ठर्रा मिला रोज मर्रा ,
पुराने तरीके वही हाल भाई !

लगी होड सी है चुराने की पैसा ,
सभी राज नेता दिखें लाल भाई !

बिके सौ टमाटर गयी प्याज ऊपर,
गरीबों की देखो छिली खाल भाई ।

अमीरी गरीबी में खाई बढ़ी है ,
चखी साल भर से नहीं दाल भाई !

अभी नोट बंदी का देखा तमासा,
नहीं खोज पाये दबा माल भाई !

चुनाबी तमासे शराबी दिलासे ,
वही झूँठ सारे वही चाल भाई !

सभी हाथ खाली न रोटी न थाली ,
धरा पूत रोये नहीं ढाल भाई !

गधे खा रहे माल देखो तमाशा ,
छिले अश्व के खुर बिना नाल भाई ।

बटी कौम भोली कमीनी सियासत ,
बजाओ न “हलधर “अभी गाल भाई !

“हलधर”