रुद्रपुर दंगे के सभी 37 आरोपी बरी

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वर्ष 2011 में 2 अक्टूबर को रुद्रपुर में दो समुदायों के बीच हुआ था विवाद

रुद्रपुर। जनपद ऊधमसिंहनगर के जिला मुख्यालय रुद्रपुर में वर्ष 2011 में 2 अक्टूबर को रुद्रपुर में दो समुदायों के बीच हुए विवाद ने बढ़ते-बढ़ते दंगे का रूप ले लिया था, जिसने उत्तराखंड की शांत फिजा को सांप्रदायिकता की आग में झोंक दिया था। इस दंगे में चार लोगों की मौत हो गई थी और तत्कालीन विधायक राजकुमार ठुकराल समेत 37 लोगों पर केस दर्ज किया गया था। मुकदमे में शनिवार रुद्रपुर दंगे के 37 आरोपियों को हत्या के मुकदमे से दोषमुक्त कर दिया गया है।

2 अक्टूबर, 2011 को रुद्रपुर में दंगे की आग फैली थी। इस घटना में तीन लोगों की मौत हो गई थी। पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के खिलाफ भी हत्या का मामला दर्ज हुआ था। जिस मुकदमे में शनिवार को अपर जिला जज तृतीय रजनीश शुक्ला की अदालत ने फैसला सुनाया है, उसमें 37 लोग नामजद किए गए थे, जिन्हें दंगे में हुई 4 मौतों के लिए जिम्मेदार बताया गया था।

आरोपियों के अधिवक्ता जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दिवाकर पांडे ने बताया कि दंगे का यह पहला मूल मुकदमा था, जिसे कोतवाल आरएस असवाल ने दर्ज कराया था। अदालत ने पुलिस की विवेचना को संदिग्ध माना। पुलिस ने जिन लोगों को गवाह बनाया था, वही मुकर गए और उन्होंने अदालत में साफ कहा कि जिस समय दंगा हुआ, वह घर में थे और उनको कोई जानकारी नहीं है। साक्ष्य के अभाव में अदालत ने सभी 37 आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया।

बता दें कि वर्ष 2011 में रुद्रपुर में दंगे के बाद एकाएक तराई का माहौल अचानक ही उत्तर प्रदेश जैसे अति संवेदनशील उनकी सूची में दर्ज हो गया था। ऐसी घटना की पुनरावृति ना हो, इसके लिए जिला और पुलिस प्रशासन ने भी उस वक्त तुरंत बड़े सख्त कदम उठाए और इसका परिणाम ही रहा उस दंगे के बाद से आज तक शांत वातावरण में रह रही तराई आज भी कौमी एकता का एक संदेश देती है।

अहिंसा दिवस के रूप में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन मना रहा था, वहीं उत्तराखंड का रुद्रपुर शहर हिंसा की चपेट में आ गया। अहिंसा दिवस वाले दिन रुद्रपुर में खून की होली खेली गई। धार्मिक ग्रंथ फाड़ने को लेकर दो समुदायों के बीच जमकर आगजनी, पथराव और फायरिंग हुई। गोली और पत्थर लगने से चार लोगों की मौत हो गई जबकि 30 से भी अधिक लोग जख्मी हो गए। दो दर्जन दुकानें लूट ली गईं और लगभग 5 दर्जन से अधिक वाहनों को आग लगा दिया गया। इस हिंसा के बाद से उत्तराखंड का यह शांतिप्रिय शहर कर्फ्यू के हवाले कर दिया गया।