तन राह भूला भीड़ में मन घूमता वीरान में: हलधर

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गीत -मन घूमता वीरान में
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तन राह भूला भीड़ में मन घूमता वीरान में ।

क्यों कैद इसमें हो गया इस बात से हैरान मैं ।।

वैभव सभी करते नमन क्या याचना देती शरण ।
आंसू सियाही हो गए है गीत का ऐसा चरण ।।
सब मछलियां घायल मिलीं सागर उठे तूफान में ।
सबका वरण करता मरण इस बात से अनजान मैं ।।1

क्यों अश्क से लिखता कता आंसू अगर बिकते यहां ।
अपने पराये हमसफर सब एक से दिखते यहां ।।
इन पत्थरों के शहर में होता बहुत धनवान मैं ।
क्या खोजती है जिंदगी मुझ अधमरे इंसान में ।।2

हर भूख से वाकिफ हुआ ,हर प्यास से परिचय हुआ ।
ये गीत , गज़लों के लिए उद्देश्य तब निश्चय हुआ ।।
क्या पुस्तकों में पा लिया, क्या पा लिया दीवान में ।
ये शारदा का दान है क्यों कर रहा अभिमान मैं ।।3

ये व्योम की औलाद हैं सीमा नही कुछ शब्द की ।
क्या जान पाया है कोई गहराइयां इस अब्द की ।।
क्यों प्राण क्रीड़ा कर रहे इस मौत के मैदान में ।
आशीष “हलधर” को मिला ,कविता मिली वरदान में ।।4

हलधर -9897346173