मूरत को छप्पन भोग लगें , दिखता भूखा इंसान नहीं ! हलधर

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गीत – दरिद्र नारायण
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मूरत को छप्पन भोग लगें , दिखता भूखा इंसान नहीं ।
पत्थर को माखन खिला रहे , मजदूरों का सम्मान नहीं ।।

नहलाते दिन में चार बार , पाहन को भोग लगाते हैं ।
सोने चांदी के अलंकार ,आभूषण उसे पिनाते हैं ।
नारायण असली सूख रहा ,भूखा रोटी को ढूक रहा ,
रेशम पाषाण पहनते है ,मानव तन पर परिधान नहीं ।
पत्थर को माखन खिला रहे ,मजदूरों का सम्मान नहीं ।।1

एकड़ में मंदिर मस्जिद हैं,चालों में बचपन घुटता है ।
शम्भू की बीबी दुर्गा का ,गुरबत में यौवन लुटता है ।
अपनी अस्मत को लुटा लुटा ,बच्चों को खाना रही जुटा ,
लो आज सत्य बतलाता हूँ ,जिसका जग को संज्ञान नहीं ।
पत्थर को माखन खिला रहे ,मजदूरों का सम्मान नहीं ।।2

दो दो दाने को आज जहां ,भूखे बच्चे छटपटा रहे ।
मंदिर मस्जिद के मुस्टंडे , अय्यासी में धन लुटा रहे ।
पकवानों के हैं ढेर वहां ,अंतड़ियां सूखी पड़ी यहां,
होटल में मांस चरें पांडे ,बेबस को रोटी दान नहीं ।
पत्थर को माखन खिला रहे ,मजदूरों का सम्मान नहीं ।।3

भगववान आज भूखा बैठा,वो देखो जली झोपड़ी में ।
कंकाल लिए सूखा बैठा ,लेकर संताप खोपड़ी में ।
सांसों की गिनती खिसक रही ,पैदल चल बेटी सिसक रही ,
नेता जी मस्ती छान रहे , भूखे कृन्दन पर ध्यान नहीं ।
पत्थर को माखन खिला रहे ,मजदूरों का सम्मान नहीं ।।4

पतली सी चादर में लिपटा ,अपने दुखड़ों को बांट रहा ।
नंगे पांवों पैदल चलकर , पत्थर को पग से काट रहा ।
जब गरम हवाएं चलती है , बच्चों की त्वचा झुलसती है,
निर्माण किया जिसने मंदिर ,अंदर उसको ही मान नहीं ।
पत्थर को माखन खिला रहे , मजदूरों का सम्मान नहीं ।।5

मजदूरों की सुन लो पुकार,कहता हूँ सबसे बार बार ।
जगती के निर्माता से ही ,क्यों होता है यह अनाचार ।
होवें सरकारी प्रावधान , हो भूख गरीबी का निदान ,
हलधर” कविता चिंगारी है ,ये कोरा कल्प बखान नहीं ।
पत्थर को माखन खिला रहे ,मजदूरों का सम्मान नहीं ।।6

हलधर -9897346173