उत्तम क्षमा धर्म को जीवन में धारण करने से ही मानव सभ्यता का कल्याण संभव है:अनुपम मुनि

0
181

देहरादून 11सितंबर। स्थानकवासी जैन परंपरा के प्रेमसुख धाम के ज्योतिष आचार्य राजेश मुनि जी महाराज के शिष्य रत्न सत्येंद्र मुनि जी महाराज लोकमान्य जैन संत अनुपम मुनि जी महाराज एवं मधुर भाषी अमृत मणि जी महाराज आदि संत जैन धर्मशाला के प्रांगण में सकल जैन समाज की ओर से आयोजित क्षमावाणी के कार्यक्रम में गुरुदेव अनुपम मुनि जी महाराज ने क्षमावाणी के पर्व पर सकल जैन समाज को संबोधित किया आदिनाथ ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक 24 तीर्थंकर भगवानों ने उपदेश दिया की क्षमा भाव से अल्लादआदि की प्राप्ति होती है आनंद भाव की प्राप्ति होती है सत चित और आनंद की उपलब्धि होती है हमारा रोम-रोम रोमांचित हो उठता है क्षमा भाव से भाव भी हल्के होते हैं मन
भी हल्का होता है वाणी भी हल्की होती हैं शरीर भी हल्का होता है भाव भी पुलकित होते हैं मन भी पुलकित हो उठता है और वाणी भी खिल उठती है शरीर चेहरा भी चमत्कृत होता है यह क्षमापना की उपलब्धि सभी प्राणी मात्र को होती है क्षमा भाव से सभी जीवो के प्रति सभी प्राणियों के प्रति सभी जीव सप्ताह के प्रति सभी मनुष्यों के प्रति और मनुष्यों के मनुष्यों की जाति मात्र के प्रति मैत्री भाव की स्थापना होती है मैत्री भाव ऐसे होता है जैसे सूर्य का प्रकाश सर्व जगत को प्रकाशित करता है ठीक इसी प्रकार से मैत्री भाव सर्व जीवो के प्रति सर्व प्राणियों के प्रति सर्वजीत सत्ता के प्रति प्रेम भाव प्रेम सद्भाव और आत्मीयता का भाव आत्मा का संबंध स्थापित होता है मैत्री भाव से सर्व जीवो की सर्व मनुष्य जातियों के भाव मन वाणी और शरीर विशुद्ध होता है ऐसा जीवन संपूर्ण संसार के लिए कल्याणकारी होता है मुनि श्री ने आगे कहा अहंकार के कारण यूक्रेन और रूस में भयंकर से भयंकर युद्ध और विनाश का कारण बना हुआ है और आज संपूर्ण विश्व मनुष्य जगत बारूद की ढेर में अनु बम परमाणु बम और मिसाइल की ढेर के ऊपर बैठा हुआ है और ना जाने कब कैसे किस प्रकार से किसका अहंकार फट जाए और साथ ही बम अनुबम और मिसाइल है मिसाइल है फट जाए संसार के प्राणी मात्र का विनाश हो जाए कहा नहीं जा सकता ऐसे विनाश शील भावनाओं के कारण और मानसिकता के कारण वाणी के कारण शरीर के कारण विनाशलीला फैल सकती है इन सभी भावों का त्याग करके हमें आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से महावीर तक 24 तीर्थंकर भगवानों की उपदेशों को या वचनों को संदेशों को सारे संसार में स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि पूरे संसार में सबका मैत्री संबंध स्थापित हो सब जगत के मनुष्य बच्चे और हिंसा भाव का त्याग हो क्रूरता के संबंध टूटे और मैत्री का संबंध स्थापित हो ऐसा आदि तीर्थंकरों ने हम सबको वचन किया है इसी से हमारी आत्मा का कल्याण है हम सब के संबंध मधुर होंगे सब में सद्भावना होगी मनुष्य मात्र में मिठास होगा और मिठास के संबंध मैत्री भाव से और क्षमा भाव से विकसित होंगे।