देहरादून 02 सितंबर ।जैन पर्वों मे दिगंबर परंपरा के अनुसार दस लक्षण पर्व का विशेष रूप से मान्यता है। आज तीसरा दशलक्षण पर्व है उसका नाम है आर्जव। आरजव का अर्थ है निष्कपटता सरलता सीधापन सरसता सहजता स्वभाविकता मुनि श्रीअनुपम मुनि जी ने प्रेमसुख धाम 16 नेशनल रोड,से सकल जैन समाज को बधाई देते हुए कहा कि हमें मायाचारी से पृथक होना चाहिए मायाचारी से अलग होना चाहिए। बाहर से देखने में साधु हैं और अंदर से रावण बना है क्योंकि रावण ने ही सीता जी का हरण किया था सीता जी को साधु साधु वेश बनाकर गोचरी के लिए आया भिक्षा के लिए आया आहार पानी के लिए आया साध्वी सीता ने साधु समझकर अपनी लक्ष्मण रेखा को तोड़कर भिक्षा लाभ दिया और लाभ देने का भाव बनाएं और आहार दान देने के लिए आगे आए तो मायाचरी रावण सीता जी को अपने विमान में उठाकर लंका ले गया फिर आप सभी को पता है कि राम ने रावण से युद्ध किया सीता जी ने अग्नि परीक्षा की और रावण को हराया। श्री राम सीता जी को अपने पास लेकर के आए अपनी धर्मपत्नी सीता जी का संरक्षण संवर्धन किया तो संसार में देखने में तो बाहर से साधु लगते हैं लेकिन अंदर में मायाचरी भरी हुई रहती है। इसीलिए हमें मायाचार का भाव त्याग देना चाहिए भगवान महावीर ने साधु के 10 लक्षण बताएं दशलक्षण में तीसरा लक्षण है साधु का साधु निष्पत्ति होना चाहिए अर्थात साधु सीधा और सरल होना चाहिए सरस होना चाहिए शुभम होना चाहिए सुलभ होना चाहिए ऐसा साधु ही और ऐसे साधु के जीवन में धर्म का वास होता है साधु का हृदय ऐसा हो जैसे बालक, बालक सीधा और सरल होता है, उसमें छल कपट माया प्रपंच बिल्कुल भी नहीं होता, इसी प्रकार से साधु भी सरल और सुगम होता है एक बार भगवान महावीर से पूछा गया प्रभु धर्म का वास कहां रहता है तो भगवान महावीर स्वामी ने कहा कि शुद्धोधन मस्से चिट्ठी की शुद्ध हृदय में धर्म का वास होता है यदि हम धर्मी हैं या धर्मात्मा तो इससे यह पता लगता है कि हम सरल होंगे सहज होंगे सीधा पन होगा, सहज जीवन होगा जीवन में किसी प्रकार की कोई कठिनता नहीं मन में भी था नहीं वाणी में भी कठोरता नहीं शरीर में भी कोई कठोरता भाव सरल हो तो मन सरल होता है मन और भाव सरल हो तो वाणी सरल होती भाव मन और वाणी सरल हो तो शरीर का आचरण भी सरल सरल होता है तो यही तो धर्म का लक्षण है और यही तो साधु का तीसरा लक्षण है ऐसा भगवान महावीर ने बताया सरलता में ही धर्म होता है सहजता में ही धर्म होता है धर्मा आचरण की सहज और सरल ही होना चाहिए उससे धर्म की उम्र लंबी होती है धर्मा आचरण सहज होजा वह आचरण जीवन के अंत तक बना रहता है। कठिन जीवन बनाने से छल कपट प्रपंच मायाचारी या लुक छुप के नियमों को तोड़ना इस प्रकार की प्रवृत्ति,से धर्म की भावना गौण हो जाती हैं धर्म भावना को जगाने के लिए हमें सहज और सरल होना अति आवश्यक है ।इसीलिए हे साधुओं तुम धर्मात्मा होते हो धर्माचरण करना चाहते हो तो तुम सहज बनो यथार्थ बनो सरल बनो सीधा हो उसे भगवान महावीर का जीवन सहेज होगा। सकल जैन समाज को बधाई देता हूं की तीसरा दशलक्षण आप सभी के लिए कल्याणकारी हो मंगलकारी हो जीवन श्रेष्ठ धर्म से भरपूर हो इन्हीं मंगलवार के साथ जय प्रेमसुख।