स्थानकवासी आमना के पर्युषण पर्व पारणा के साथ सम्पन।

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  1. देहरादून 01 सितंबर। श्री प्रेमसुख धाम में आज पर्युषण पर्व का समापन हुआ इस अवसर पर धाम में करीब एक सौ पचास श्रद्धालुओं ने अपने उपवास का पारणा किया इन में से कुछ लोगो ने लगातार आठ दिन निराहार रहकर व्रत किए किसी ने चार दिन किसी ने तीन दिन,सर्वाधिक 51 व्रत रखने वाली श्रीमति मदन जैन को सम्मानित किया गया।अपने संबोधन में श्री अनुपम मुनि जी ने बताया कि साल में एक बार आने वाले पर्व को संवत्सरी पर्व कहा जाता है, जैन धर्म में भी संवत्सरी पर्व साल में एक बार ही आता है इसीलिए पर्युषण पर्व के आठवें दिन को महा संवत्सरी पर्व कहा जाता है। इसे क्षमा याचना का आशीष संवत्सरी कहा जाता है हमारी जैन मान्यता के अनुसार पीनी और उत्सव पीनी नाम के दो काल हैं इन 2 कालों में कालका चक्र घूमता रहता है कभी अवसर पर निकाल तो कभी उत्सव पर नहीं खाना अभी वर्तमान में अवसर पर निकाल चल रहा है अवसर पर निकाल उसे कहते हैं विकास से हराश की ओर आना फल फूल निरस का कम होता होता कम हो ही जाता है पुरुषों के संस्थान में कमी ओ गाना लंबाई चौड़ाई में कमी और यह कमियां धीरे-धीरे बैंगन के पौधे जितने होती चली जाएगी यह अवसर पीने की चरम स्थिति रहेगी अवसर पर निकाल के तारे हैं सुखम सुख सुखम फिर सुख दुख फिर दुखम सुखम फिर दुखद फिर दुख दुख इस प्रकार से अवसर पर निकाल के 6 भेद माने जाते हैं और इसी प्रकार से उत्सव पर निकाल के भी हरा से विकास की ओर अग्रसर होता है इसके पीछे भेद माने जाते हैं अवसर पर निकाल के भेद हैं वही उत्तर प्रदेश काल के भेद माने जाते हैं उसे पीने से अवसर पर निकाल तक और अवसर पर निकाल से उत्सव निकाल तक माने जाते हैं एक ताल जब दूसरे कॉल से जुड़ता है या के काल खत्म हो करके दूसरा काल शुरू होता है तो संसार में कुछ परिवर्तन विशेष रूप से आते हैं जैसे उत्सव पर निकाल खत्म होकर अवसर के निकाल प्रारंभ हुआ तो उस समय सृष्टि में मांसाहार और लोगों का जंगलों में निवास गुफाओं में निवास होता था सिंधु की गुफाओं से निकलकर सिंधु नदी के किनारे गढ़ी हुई मछलियों को मारकर या निकालकर लोक खाकर अपनी आजीविका चलाया करते हैं और जब सृष्टि का संपूर्ण विकास होता है तब पंच प्रकार के अमृत की वर्षा होती है दूध की वर्षा भीगी वर्षा चीनी की वर्षा दही की वर्षा नमक की वर्षा इस प्रकार से पंचामृत की वर्षा होती है ऐसी मान्यता है पंचामृत की वर्षा होने के पश्चात सृष्टि का सृष्टि हरी-भरी हो जाती है पेड़ों में फल फूल लगने लगते हैं धरती में घास उगने लगते हैं अनेका अनेक तरह के फल अनेकानेक तरह के अनाज अनेकानेक तरह की सब्जियां उगने लगते हैं और शहद में मनुष्य फल फूल को सकता है मनुष्य को कुछ स्वाद आता है तो कहते हैं जो संपूर्ण मनुष्य मांसाहार को छोड़कर शाकाहार कुदरत का आहार कुदरत का भोजन प्रकृति का भोजन वह शिकार करता है और संपूर्ण रूप से मांसाहार का त्याग करता है मांस मछली आदि इन सभी चीजों की हत्याएं बंद कर शुद्ध शाकाहारी भोजन को ग्रहण करता है जिस दिन मांसाहार का त्याग किया पूरे मानव जाति ने उस दिन को ही संवत्सरी के रूप में प्राचीन समय में आदि मानव ने एक दूसरे से मिलकर व्रत संकल्प कर भगवान को याद कर इस पर्व को मनाना प्रारंभ किए इस दिन भगवान की भर्ती के साथ एक दूसरे की क्षमा करना और निराहार रहकर भगवान की भक्ति करना और पुरानी त्रुटियों के लिए भगवान की साक्षी से क्षमा याचना करना एक दूसरे से माफी मांगना माफी देना और माफी मांगना दिल को संपूर्ण रूप से खाली कर भाईचारे का संबंध स्थापित करने का नाम ही संवत्सरी हैं जैन धर्म में इसे क्षमा लेने का और क्षमा देने का पर्व के रूप में मनाया जाता है जैन धर्म पुराने समय के मानव जाति के महा पर्व संवत्सरी को प्राचीन काल से लेकर के अब तक मनाता रहा है बनाता रहेगा दिगंबर श्वेतांबर मूर्तिपूजक स्थानकवासी और 13 पद चारों समाज के जैन समाज के लोग समझ सरी महापर्व को मनाते हैं जैन समाज के कुछ लोग निर्जल उपवास करते हैं और कुछ लोग टीका भोजन खाकर के जैन सभा में रहकर तपस्या करते हैं कुछ लोग अकासना करते हैं और कुछ लोग श्रीमद् अंतर्गत प्रशांत सूत्र की बासनी कल्पसूत्र की बासनी सुनते हैं और इस दिन संवत्सरी महापर्व क्रमण जैन समाज जैन मंदिर या जैन सभाओं में विशेष रुप से करता है संत गुरु जैन साधु साध्वी और जैन समाज के आवाज वृद्ध लोग इस महापर्व के पावन प्रसंग पर निर्जल उपवास करके संपूर्ण रीती से मनाते हैं और णमोकार महामंत्र 24 घंटों इसका सिमरन होता है जाप होता है अगले दिन सूर्योदय होते ही णमोकार मंत्र और परस्पर में क्षमा याचना करने के बाद णमोकार मंत्र की चौकी को उठाकर पाठ को पूरा किया जाता है और लोगों का प्रसाद लड्डुओं का प्रसाद सभी जनता जनार्दन भक्तों को दिया जाता है और गुरुजन मंगल पाठ देते हैं इस बार भी गुरु प्रेमसुख धाम में 31 तारीख संवत्सरी महापर्व के पावन प्रसंग पर व्रत स्थान कथा अनुष्ठान समय का अनुष्ठान के साथ साथ अनेका अनेक धर्म गतिविधियों के साथ व्रत उपवास विशेष रूप से होंगे रात्रि कालीन जैन प्रतिक्रमण होगा 24 घंटे महामंत्र णमोकार मंत्र का पाठ होगा गुरुदेव श्री राजेश जी महाराज तपस्वी श्री सत्येंद्र मुनि जी महाराज अनुपम मुनि जी आदि ठाणा 6 संतों के सानिध्य में धूमधाम से बर्तन स्थान करके 1 तारीख को यहां पर प्रातः सुबह ही सभी व्रत करने वालों को और सभी भक्तों का व्रत खोल कर पढ़ने का कार्यक्रम यहां पर विशेष होगा पार ना कराने का सौभाग्य श्रीमती शकुंतला जैन धर्मपत्नी प्रमोद जैन सहारनपुर वाली श्रीमती मंजू जैन धर्म पत्नी जनार्दन जैन देहरादून वालों की तरफ से पारणा की व्यवस्था की गई।