पूर्व मुख्यमंत्री की भतीजी भी पा गयी विधानसभा में नौकरी।

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देहरादून। सरकारी नौकरियों में गड़बड़ झाले और पेपर लीक तथा नकल माफिया के हावी होने व विधानसभा में बैक डोर से अपने सगे-संबंधियों को नौकरी दिए जाने के मुद्दों को लेकर इन दिनों सूबाई सियासत में भूचाल आया हुआ है। इस सियासी संग्राम में भाजपा और कांग्रेस नेताओं में भले ही वाक युद्ध छिड़ा हो लेकिन दोनों ही पूरी तरह से फंसे हुए नजर आ रहे हैं। सवाल यह है कि धामी सरकार जो सभी नियुक्तियों की जांच की बात कर रही है वह फर्जी नियुक्तियों की जांच जम्मू कश्मीर सरकार की तर्ज पर सीबीआई को सौंपने और भर्तियों को रद्द करने का साहस क्यों नहीं दिखा पा रही है।
इन भर्तियों में हुए घपलों में नित नए अध्याय जुड़ रहे हैं और नित नई गिरफ्तारियां भी हो रही है। यूकेएसएसएससी पेपर लीक मामले में आज एक और गिरफ्तारी के साथ 28 गिरफ्तारियां हो चुकी है। वही विधानसभा में हुई बैक डोर भर्तियों में पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में गर्वनर भी लपेटे में आ गए हैं। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए प्रेमचंद्र अग्रवाल ने जिन 72 लोगों को नौकरी दी उनमें पूर्व मुख्यमंत्री की भतीजी के नाम के साथ-साथ आरएसएस के प्रांत सह प्रचारक के भतीजे और अन्य कुछ सगे संबंधियों के नामों का भी खुलासा हुआ है। जिसे लेकर कांग्रेस हमलावर है। सवाल यह है कि कांग्रेसी नेता व पूर्व स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल अपने बेटे व पुत्रवधू सहित डेढ़ सौ लोगों को जिनमें से अधिकांश उनके विधानसभा क्षेत्र के हैं, बैक डोर से सरकारी नौकरी देकर कह रहे हैं कि उन्होंने कोई पाप नहीं किया है। वहीं पूर्व स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल जो अब धामी सरकार में मंत्री हैं, 72 लोगों को बैक डोर से नियुक्ति देकर जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री के परिजन व अनेक संघ नेताओं के परिजन शामिल है,अपने इस कृत्य को सही कह रहे हैं। सबका साथ और सबका विकास का नारा देने वाली भाजपा कैसे सबका विकास कर रही है यह इसका एक उदाहरण है।
मुख्यमंत्री धामी जो अब तक सभी नियुक्तियों की जांच की बात कह रहे थे क्या अब अपने राजनीतिक गुरू पूर्व मुख्यमंत्री के नाम भी इसमें जुड़ने के बाद जांच कराएंगे यह अहम सवाल है। जम्मू कश्मीर सरकार ने अभी हुई वित्त लेखा सहायकों व जेई भर्ती में धांधली के मामले पर बड़ा कदम उठाते हुए न सिर्फ इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया है बल्कि इसकी जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश भी की है। उत्तराखंड में भर्तियों में जब व्यापक स्तर पर धांधली हुई है तो धामी सरकार इसकी जांच सीबीआई से कराने से क्यों कतरा रही है देखना होगा मुख्यमंत्री धामी और उनकी सरकार का अब अगला कदम क्या होता है।