छंदों में द्वन्द बांधता हूँ , क्या जानूँ मैं कविता गाना : हलधर

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गीत -कलम सिपाही

छोटा सा कलम सिपाही हूँ ,ये ही मेरा है अफसाना ।
छंदों में द्वन्द बांधता हूँ , क्या जानूँ मैं कविता गाना ।।

शब्द गूंजते भूमंडल में ,जिनकी सीमा का अंत नहीं ।
कविता मन में कैसे आयी ,वाणी पर लगा हलंत नहीं ।।
मुझको ऐसा लगता है मैं ,इसी प्रयोजन से आया हूँ ।
मैं गाँव गली में पला बढ़ा ,मेरा कोई कवि कंत नहीं ।।
गाली से बात सुरु होकर ,गोली पर होती ख़त्म जहाँ ।
ऐसे मौसम की छाया में ,सीखा है हँसना मुस्काना ।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं क्या जानूं मैं कविता गाना ।।1

सूरज की गर्मी देखी है ,चंदा की छाया देखी है ।
कुछ बुरा वक्त भी देखा है ,पैसे की माया देखी है ।।
मोती के सब सौदागर हैं ,आँसू का मोल नहीं मिलता।
सुनसान पड़े वीरानों में, भूतों की काया देखी है ।।
वो पत्थर का भगवान हमें ,मंदिर में बैठा दिखता है।
पर मेरा मन ये कहता है ,मानव मन उसका तहखाना ।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं क्या जानूं मैं कविता गाना ।।2

कुछ मुक्त छंद फनकार यहाँ, साहित्य सदन में बैठे हैं।
कुछ कविता ठेकेदार यहाँ , मंचों पर तन कर बैठे हैं ।।
कुछ मावे को बर्फी कहते ,कुछ बर्फी को कहते मावा ।
कुछ नेताओं के चमचे हैं ,कुछ सिंहासन हर बैठे हैं ।।
कुछ लमहे और बिताने हैं , इस सघन उपेक्षा में मुझको ।
यदि इससे अधिक लिखूँगा तो देना पड़ जाये हरजाना ।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं क्या जानूं मैं कविता गाना ।।3

मेरा भी कभी वक्त होगा , होता मन में विस्वास नहीं ।
इन राजनीति के खेमों में , कोई भी मेरा खास नहीं ।।
इसमें मेरा अपराध नहीं ,आया में कृषक घराने से ।
सारा पथ दुर्गम सा लगता , उड़ने को भी आकाश नहीं ।।
लकिन मैं हार न मानूँगा, कविता तो लिखता जाऊँगा।।
कविता के दम से ही”हलधर “,जायेगा जग में पहचाना।।
छोटा सा कलम सिपाही हूं क्या जानूं मैं कविता गाना ।।4

हलधर -9897346173