संग लहरों के बहा जाता नहीं है: कवि हलधर

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संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।
रेत का सागर गहा जाता नहीं है ।।

धार के विपरीत ही बहता रहा हूँ ।
बात अपनी जोर से कहता रहा हूँ ।
आग पीकर भी कभी बहका नहीं मैं ,
दर्द अब खुलकर कहा जाता नहीं है ।
संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।1।।

कुछ विषैले नाग भी पीछे पड़े हैं ।
मान मर्यादा मिटाने पर अड़े हैं ।
जान अब कैसे बचायें ज़ालिमों से ,
राज गैरों से कहा जाता नहीं है ।
संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।2।।

भीड़ कल तक साथ अपने दौड़ती थी ।
जिंदगी हर पल नये सुर छोड़ती थी ।
वक्त की दीमक लगी है देह खाने ,
यह बुढापा यूँ सहा जाता नहीं है ।
संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।3।।

आँख से काजल चुराती चाँदनी है ।
राज छंदों से छुपाती रागिनी है ।
प्यास में सूखी नदी सा हो गया हूँ ,
सिंधु को तल तक थहा जाता नहीं है ।
संग लहरों के बहा जाता नहीं है ।।4।।

हलधर -9897346173