*जैन धर्म अनुसार दीपावली पूजन एवं इसका महत्व*

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जैन धर्म में दीपावली का विशेष महत्व है।
आज से 2545 वर्ष पूर्व इसी दिन अमावस्या को जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर ने बिहार की पावापुरी की भूमि से निवार्ण प्राप्त किया था। मान्यता है कि इसी दिन पावापुरी में भगवान महावीर के चरण चिन्ह के स्थान के ऊपर एक छत्र स्वयं ही घूमने लगता है। भगवान के निवार्ण प्राप्त करने के उपरांत प्रात:कालीन बेला में देवों द्वारा दिव्य दीपों को आलोकित कर निर्वाण महोत्सव मनाया गया।
आज भी हम सब भगवान महावीर निवार्ण दिवस के रूप में दीपावली का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन विधि-विधान से भगवान महावीर की पूजा-अर्चना की जाती है, निर्वाण लाडू (नैवेद्य) चढाकर आरती की जाती है तत्पश्चात बहुतायत की संख्या में दीपकों से मंदिर को सजाया जाता है। इसके अलावा सायंकाल को मंदिर जी में दीपमालिका की जाती है। दीपमालिका ज्ञान का प्रतीक है। दीपमालिका करते समय मन में भावना भानी चाहिए कि हम सभी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो और जीवन में अंधकार का नाश हो।