उत्तराखण्डशासन

मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला, उत्‍तराखंड में एक जुलाई से सीमित तरीके से होगी चार धाम यात्रा प्रारंभ

देहरादून: मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत मंत्रिमंडल ने अहम निर्णय लेते हुए प्रदेश में एक जुलाई से चार धाम यात्रा को सीमित तरीके से प्रारंभ करने का फैसला लिया है। परंतु अभी सिर्फ धामों से संबंधित जिलों के लोग ही यात्रा कर सकेंगे।

शुक्रवार शाम पांच बजे सचिवालय में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में12 बिंदुओं पर मंथन हुआ, जिसमें कि 10 बिंदुओं पर फैसले लिए गए. जबकि दो बिंदुओं को स्थगित कर दिया गया।इस दौरान मंत्रीमंडल ने नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेश को श्रद्धांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा।

कैबिनेट मंत्री व शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने बताया कि मंत्रिमंडल ने चार धाम यात्रा को लेकर तमाम परिस्थितियों पर विचार किया। इसलिए अभी संबंधित जिलों में ही यात्रा प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया है। साथ ही जानकारी दी कि चार धाम यत्रा को जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए पंजीकरण और कोरोना की 72 घंटे पहले की आरटीपीसीआर और एंटीजन जांच रिपोर्ट निगेटिव होना आवश्यक है।

उनियाल ने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप कम होने और तीसरी लहर के अंदेशे को देखते हुए सरकार चार धाम यात्रा को लेकर सधे तरीके से कदम बढ़ा रही है। जिसके तहत बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री धामों के दर्शन की अनुमति क्रमशः चमोली रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिले के निवासियों को ही दी गई है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट भी यात्रा की कवायद पर नजर रखे हुए है।

मंत्रिमंडल ने अन्य महत्वपूर्ण फैसलों में टिहरी, उत्तरकाशी और चमोली में बाढ़ मैदान क्षेत्रों के चिहनीकरण पर मुहर लगा दी है। गंगा, भिलंगना, भागीरथी व अलकनंदा के करीब 565.35 किमी तटीय क्षेत्रों में बाढ़ से सुरक्षा को पुख्ता बंदोबस्त किए जाएंगे। बाढ़ के खतरे का आकलन करते हुए ही निर्माण कार्यों को अनुमति मिल सकेगी।

शासकीय प्रवक्ता ने बताया कि चार धामों के पुजारियों एवं तीर्थ.पुरोहितों का टीकाकरण कराया जाएगा। यात्रा के दौरान कोरोना गाइडलाइन का सख्ती से पालन करना होगा। प्रत्येक धाम में इस कार्य के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी नामित किए जाएंगे। ये अधिकारी देवस्थानम बोर्ड और जिला प्रशासन के साथ समन्वय कर काम करेंगे। चार धाम यात्रा के सुचारू संचालन को अलग मानक प्रचलन विधि. एसओपी. पर्यटन व धर्मस्व विभाग जारी करेगा। यात्रा के दौरान हाईकोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा।

वहीें उन्होंने बताया कि दूसरे चरण की यात्रा 11 जुलाई से प्रस्तावित है। इसमें समस्त राज्य के निवासियों को यात्रा की अनुमति देने पर विचार किया जा सकता है। कोरोना की परिस्थितियों का आकलन करते हुए इस बारे में निर्णय लिया जाएगा।

मंत्रिमंडल ने भिलंगना, भागीरथी, गंगा, अलकनंदा नदी के तटीय इलाकों में बाढ़ के खतरे के मद्देनजर संवेदनशील क्षेत्रों को अधिसूचित करने को स्वीकृति दी है। उत्तराखंड बाढ़ मैदान परिक्षेत्रण अधिनियम 2012 के प्रविधान के मुताबिक इन क्षेत्रों का चयन किया गया है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने इस संबंध में राज्य सरकार को निर्देश जारी किए थे। टिहरी, उत्तरकाशी और चमोली के बाढ़ परिक्षेत्रण अधिकारी की इस संबंध में रिपोर्ट पर विचार करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय समिति गठित की गई थी। 12 फरवरी 2021 को समिति की बैठक में उक्त रिपोर्ट को अनुमोदित करने की सिफारिश की गई थी। मंत्रिमंडल ने यह सिफारिश मंजूर कर ली है।

बताया कि टिहरी जिले में भिलंगना नदी के दोनों किनारों पर गंगी से घनसाली तक 68 किमी गंगा नदी पर देवप्रयाग संगम से ढालवाला ड्रेन मुनिकीरेती तक 68 किमी क्षेत्र चिहिनत किया गया है। इसके अतिरिक्त भागीरथी नदी के दोनों किनारों पर कोटेश्वर डैम से देवप्रयाग संगम तक 22.50 किमी व अलकनंदा के दाएं किनारे पर श्रीनगर डैम से देवप्रयाग संगम तक 37 किमी बाढ़ मैदान परिक्षेत्र घोषित किया गया है। उत्तरकाशी में भागीरथी नदी के दोनों किनारों पर गंगोत्री से गंगनानी तक 42 किमी गंगनानी से गंगोरी तक 33.85 किमी और बड़ेथी चुंगी से धरासू पावर हाउस चिन्यालीसौड़ तक 25 किमी क्षेत्र भी इसमें शामिल है।

साथ ही चमोली जिले में अलकनंदा नदी के दाएं तट पर माणा से तौली लगारानो तक 135 किमी अलकनंदा नदी के बाएं तट पर माणा से सोनला तक 112 किमी और अलकनंदा नदी के बाएं तट पर सोनला से कमेड़ा तक 22 किमी क्षेत्र भी इसका हिस्सा होगा। बाढ़ मैदान परिक्षेत्रों में पिछले 25 साल की बारिश के आंकड़े और अगले 100 साल में कहां तक बाढ़ आ सकती है, इसका आकलन किया जाएगा। इस खतरे को भांपकर ही बाढ़ सुरक्षा कार्य और निर्माण कार्य किए जा सकेंगे।

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