संस्कृति

जैन धर्म के विषय में प्रमुख बाते

दिगम्बर जैन धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक है। दूसरा सम्प्रदाय है – श्वेताम्बर। दिगम्बर= दिक् अम्बर अर्थात दिगंबर का अर्थ होता है दिशा ही जिसका अंबर अर्थात् वस्त्र है। दिगंबर संप्रदाय के अनुयायी मोक्ष प्राप्त करने के लिए नग्नतत्व को मुख्य मानते हैं और स्त्रीमुक्ति का निषेध करते हैं। श्वेतांबरों के ४५ ग्रंथों को भी वे स्वीकार नहीं करते। उनका कथन है कि जिन भगवान द्वारा भाषित आगम ग्रंथों का बहुभाग काल-दोष से नष्ट हो गया हैं। तीर्थंकर महावीर के पश्चात् इंद्रभूति गौतम, सुधर्मा और जंबूस्वामी तक जैनसंघ में विशेष मतभेद के चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं होते। परतु जंबूस्वामी के पश्चात् दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय की आचार्य परंपराएँ भिन्न पड़ जाती हैं।

परिचय
दिगंबरों के अनुसार विष्णु, नंदी, अपराजित गोवर्धन और भद्रबाहु नामक पाँच श्रुतकेवली हुए, जबकि श्वेतांबर परंपरा में प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतविजय और भद्रवाहु श्रुतकेवली माने गए हैं। भद्रबाहु दोनों संघों में सामान्य हैं, इससे मालूम होता है कि भद्रबाहू के समय तक जैन संघ में दिगंबर श्वेतांबर का मतभेद नहीं हुआ था। श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार महावीर निर्वाण के ६०९ वर्ष बाद (ईसवी सन् ८३) रथवीपुर में शिवभूति द्वारा बोटिक मत (दिगंबर) की स्थापना हुई। कोंडिन्य और कोट्टिवीर शिवभूति के दो प्रधान शिष्य थे।

प्रमुख दिगंबराचार्या कुन्दकुन्द स्वामी की प्रतिमा (कर्नाटक)
दिगंबर मान्यता के अनुसार उज्जैन में चंद्रगुप्त के राज्यकाल में आचार्य भद्रबाहु की दुष्काल संबंधी भविष्यवाणी सुनकर उनके शिष्य विशाखाचार्य अपने संघ को लेकर पुन्नाट चले गए, कुछ साधु सिंधु में विहार कर गए। जब साधु उज्जैनी लौटकर आए तो वहाँ दुष्काल पड़ा हुआ था। इस समय संघ के आचार्य ने नग्नत्व ढाँकने के लिए साधुओं को अर्धफालक धारण करने का आदेश दियाय आगे चलकर कुछ साधुओं ने अर्धफालक का त्याग नहीं किया, ये श्वेतांबर कहलाए। मथुरा के जैन शिलालेखों से भी यही प्रमाणित होता है कि दोनों संप्रदाय ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी के आसपास एक दूसरे से पृथक् हुए। गुजरात और काठियावाड़ में अधिकतर श्वेतांबर तथा दक्षिण भारत,मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में अधिकतर दिगंबर पाए जाते हैं।

दिगम्बर साधु

दिगम्बर मुनि निर्वस्त्र होते हैं, पड्गाहन करने पर एक बार खडे होकर हाथ में ही आहार लेते है। मात्र पिच्छी तथा कमण्डल रखते है एवं पैदल चलते है।

अट्ठाईस मूलगुण
सभी दिगंबर मुनियों के लिए २८ मूलगुणों का पालन अनिवार्य होता है।

 

 

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